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भगवतीसूत्र अपर्यादाय कृष्णपुद्गलं नीलपुद्गलतया, नीलपुद्गलं वा कृष्णपुद्गलतया परिणमयितुं न समर्थः, अपितु परियाइत्ता पथू' वाह्यान् शरीरवाशान् पुद्गलान् पर्यादायैव कृष्णपुद्गलं नीलपुद्गलतया, नीलपुदगलं वा कृष्णपुद्गकतया परिणमयितुं समर्थः इति भावः। गौतमः पुनः पृच्छति-सेणं भंते ! कि इहगए पोग्गले० ? हे भदन्त ! स खलु देवः किम् इहगतान् पुद्गलान् पर्यादाय, तत्रगतान पुद्गलान् वा पर्यादाय, अन्यत्रगतान् वा पुद्गलान् पर्यादाय कृष्णपुद्गलं नीलपुदगलतया, नीलपुद्गलं वा कृष्णपुद्गलतया विकुर्वति ? भगवानाह-'तं चेव, नवरं-परिणामइ त्ति भाणियव्वं' तदेव पूर्वोक्तवदेव देववाह्यपुद्गलोंका ग्रहण किये विना कृष्णपुद्गलको नीलपुद्गलके रूपमें नहीं परिणमा सकता है और न वह नीलपुद्गलको कृष्ण पुद्गलके रूपमें 'परियाइत्ता पभू' परिणमानेमें ममर्थ होता है, हां, ऐसा वह तभी कर सकता है कि जब वह बाह्यपुद्गलों को ग्रहण करे बायपुद्गलका तात्पर्य-शरीरसे भिन्न पुद्गलोंसे है। अतः जब वह अपने शरीर से भिन्न पुद्गलों को ग्रहण करता है तभी वह पूर्वाक्तरूपसे नीलादि पुद्गलोंको कृष्णादिपुद्गलोंके रूपमें परिणमा सकता है । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछ रहे हैं कि 'से णं भंते! किं इहगए पोग्गए' हे भदन्त ! वह देव क्या इगतपुद्गलों का ग्रहण करके, अथवा तत्रगतपुद्गलोंको ग्रहण करके, या अन्यत्रगत पुद्गलों को ग्रहण करके कृष्णपुद्गलको नीलपुद्गलके रूपमें अथवा नीलपुद्गल को कृष्णपुद्गलके रूपमें विकुर्वित करता है परिणमाता हैं ? भगवान् इसके उत्तरमें उनसे कहते हैं कि 'तं चेव नवरं परिणामेइ. નીલપુગલરૂપે અથવા નીલપુદગલને કૃષ્ણપુગલરૂપે પરિણાવી શકવાને સમર્થ નથી. परन्तु 'परियाइत्ता पभू' माय भुगतान प्राय शने ४ ते मे २४वान. શકિતમાન બને છે “ખા પુગલ” એટલે શરીરની બહાર રહેલાં પુદગલો, કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જ્યારે તે પિતાના શરીરથી ભિન્ન હોય એવાં પુદગલેને ગ્રહણ કરે છે, ત્યારે જ પૂર્વોત નીલાદિ પુદ્ગલેને કૃષ્ણાદિ પુદગરૂપે પરિણુમાવી શકે છે.
वे गौतमत्वामी महावीर प्रभुने मेवा प्रश्न पूछे छे ४ ‘से णं भंते ! कि इगए पोग्गले. त्या महत! ते देव मा क्षेत्रमा पुगतान अडएर ४शन, मथवा દેવલેક યુગલેને ગ્રહણ કરીને, અથવા અન્યત્ર ક્ષેત્રના ૫ગલેને ગ્રહણ કરીને કૃષ્ણપુદગલને નીલપુદગલરૂપે અથવા નીલપુગલને કૃષ્ણપુદગલરૂપે પરિણાવે છે? • भडावीर प्रभुने। उत्तर- 'तंचेव नवरं परिणामेइ त्ति भाणियां' गौतम