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________________ १५४ . . . . भगवतीसरे एकैक वालाग्रमुद्धियतेऽसौ उद्धारसमयः मोच्यते । तथा द्वीपसमुद्रेषु परिणामो नेतव्योज्ञातव्यः तथाहि-'दीवसमुदाणं भंते ! किं पुढवी परिणामा आउपरिणामा जीवपरिणामा पोग्गलपरिणामा ? गोयमा ! पुढविपरिणामावि, आउ परि और समुद्र उद्धार समय से हैं । एक एक समयमें जो यालाग्र बाहर निकाला जाता है उसका नाम उद्धार समय है । इस उद्धार समयकी अपेक्षा लेकर जब द्वीप और समुद्रोंकी संख्याका विचार किया जाता है तो अढाई उद्धार सागरोपमके जितने उद्धार समय होते है, उतनेद्वीप और समुद्र हैं। द्वीपों और समुद्रों में परिणाम इस प्रकार से कहा गया है दीवसमुदाणं भंते ! किं पुढवी परिणामा, आउपरिणामा, जीवपरिणामा, पोग्गलपरिणामा ? गोयमा ! पुढविपरिणामा वि, आरपरिणामा, वि जीवपरिमावि, पोग्गलपरिणामावि" गौतमस्वामी प्रभु से पूछ रहे है कि हे भदन्त ! द्वीप और समुद्र ये किसके परिणाम हैं-क्या पृथिवी के परिणाम हैं ? या अप-जलके परिणाम हैं ? या जीव के परिणाम है ? या पुदगल के परिणाम है? इसके उत्तर में प्रभु उन से कहते हैं कि हे गौतम ! द्वीप और समुद्र पृथिवी के भी परिणाम है, अप-जल के भी परिणाम हैं, जीव के भी परिणाम है, पुद्गल के भी परिणाम है। सर्वजीवों का उत्पाद इस प्रकार से દ્વીપ અને સમુદ્ર ઉદ્ધાર સમયની અપેક્ષાઓ છે એક એક સમયમાં જેટલા બાલાગ્ર બહાર કાઢવામાં આવે છે, તેનું નામ ઉદ્ધાર સમય છે. આ ઉદ્ધાર સમયની અપેક્ષાએ જે દ્વીપ અને સમુદ્રોની સંખ્યાનો વિચાર કરવામાં આવે તે અઢી ઉદ્ધાર સાગરોપમના જેટલા ઉદ્ધાર સમય થાય છે, એટલા દ્વીપ અને સમુદ્રો છે દ્વીપ અને સમુદ્રોમાં परिणाम २मा प्रमाणे यु छ- दीवसमुदाण भंते ! किं पुढवी परिणामा, आउपरिणामा, जीवपरिणामा, पोग्गलपरिणामा?" गौतम स्वामी महावीर प्रभुने એ પ્રશ્ન પૂછે છે કે “દ્વીપ અને સમુદ્રો શું પૃથ્વીને પરિણામરૂપ છે? કે અપૂ (જળ) ના પરિણામરૂપ છે? કે જીવન પરિણામરૂપ છે? કે પુદગલના પરિણામરૂપ છે? महावीर प्रभुने। उत्त२- "गोयमा ! पुढवी परिणामा, वि आउपरिणामा वि, जीवपरिणामा वि, पोग्गलपरिणामा वि" 3 गीतम! ६५-समुद्रा પૃથ્વીનું પણ પરિણામ છે, જળનું પણ પરિણામ છે, જીવનું પણ પરિણામ છે, અને પુદગલનું પણ પરિણામ છે. સર્વે જીવના ઉત્પાદના વિષયમાં આ પ્રમાણે કથન સમજવું
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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