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प्रमेय का ठीका श० ५ ३० १ ० ४ लचणसमुद्रवतव्यतानिरूपणम् ७५
छाया - लवणे खलु भदन्त । समुद्रे सूर्यो उदीची- प्राचीनम् उद्गत्य० १ या एव जम्बूद्वीपस्य वक्तव्यता भाणता, सा एव सर्वा अपरिशेषिका लवणसमुद्रस्यापि भणितध्या, नवरम् - अभिलाषोऽयं ज्ञातव्यः - यदा खलु भदन्त ! लवणे समुद्रे दक्षिणा दिवसो भवति, रदेव यावत् तदा लपर द्र पौरस्त्य - पश्चिमे रात्रिर्भवति, एतेन अभिलापेन ज्ञातव्यम्, यदा खलु भदन्त । लवणसह दक्षिलवणसमुद्रादि की विशेषवक्तव्यता
( लवणेणं भंते! समुद्दे ) इत्यादि ।
सूत्रार्थ (लवणेणं भंते । समुद्दे सुरिया उदीचि पाईणमुच्छ) हे भदन्त ! समुद्र में सूर्य ईशान दिशा में उदित होकर आग्नेय दिशा तरफ जाते हैं क्या ? ( जच्चेच जंबुद्दीवास वत्तन्वया भणिया ) हे गौतम ! जंबूद्वीप में जैसी वक्तव्यता सूर्यों के विषय में कही गई है वैसी ही पूर्ण वक्तव्यता यहां पर कहनी चाहिये । (नवरं) परन्तु उसकी अपेक्षा जो यहां की वक्तव्यता में अन्तर आता है वह इस प्रकार से है कि ( अभिलावो इमो यो ) यहाँ पर अभिलाप इस प्रकार से बोलना चाहिये (लवणे समुद्दे दाहिने दिवसे भवइ ) हे भदन्त ! जब लवणसमुद्र के दक्षि
में दिवस होता है ( तं चैव जाव तथा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिमपच्चत्थिमे णं राई भवइ, एएणं अभिलावेण णेयव्वं ) उस समय उत्तरार्ध में भी दिवस होता है इत्यादि रूप से जंबूद्वीप की वक्तव्यता में जैसा पहले कहा जा चुका है वह सब प्रकरण यहाँ पर ग्रहण कर लेना
-લવણ સમુદ્રાદિની વિશેષ વક્તવ્યતા
- ( लवणे ण भंते 1 समुद्दे ) त्याहि
सूत्रार्थ - (टवणेण भंते! समुद्दे सूरिया उदोचि - पाईण मुग्गच्छ. ) डेलहन्त ! લવણુ સમુદ્રમાં સૂર્ય ઈશાન દિશામાં ઉય પામીને શું અગ્નિદિશા તરફ नय े ? ( जच्चेव जंबुद्दीवरस वत्तव्वया भणिया ) हे गौतम! यूद्वीयभां સૂયૅના વિષયમાં જેવી પ્રરૂપણા કરવામાં આવી છે, એવીજ સંપૂર્ણ પ્રરૂપણા અહીં यागु ४२वी लेहये, (नवर) याशु ते वर्णन उरतां भा वर्षानमांनीथे प्रभाशे २ार समन ( अभिला इमो णेयव्वो) अहीं गया प्रमाणे भासाया मनवा लेखे ( लवणे समुद्दे दाहिणड़ढे दिवसे भवइ ) डे लहन्त ! क्यारे सवगुसभुद्रना इक्षिणाधमां हिवस थाय छे ( तंचेव जाव- तयाण लवणसमुद्दे पुरत्थिमपच्चत्थिमे णं राई भवइ, एएणं अभिलावेण णेयव्व' ) त्यारे तेना उत्तरार्धभां पशु શુ દિવસ થાય છે ? ઇત્યાદિ જે કથન જમૂદ્રીપની વક્તવ્યતામાં પહેલાં કરાયું