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चन्द्रिका टी० श० ६ उ० ३ ० ४ कर्म स्थिति निरूपणम्
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तिती भाषेः । ' वेयणिज्जं हेहिला वंषंति ' वेदनीयं कर्म अधस्तनाः आद्यास्त्रयो मनोवचः कोययोगिनः वध्नन्ति, सयोगानां वेदनीयत्रन्धकत्वात् ' अजोगी ने वैध' अयोगी वेदनीय कर्म न बध्नाति, अयोगिनः सर्वकर्म विन्धकत्वात् । अथ उपयोगविषयकत्र्थद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति - 'गागावर णिज्जं णं भंते कम्म किं सागारोषउत्ते बंध' हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म किम् साकारोपयुक्तो बध्नाति ? अणगारोवउत्ते बंधइ ? ' अनाकारोपयुक्तो वा वध्नाति ? भगवानाह - ' गोयमी 1 अयोगी जीव इन कर्मप्रकृतियों का बंध नहीं करता है (वेयणिज्जं हिला बधति) वेदनीय कर्म का बंध तीनों योग वाले करते हैं। क्यों कि तीनों योगवालों को वेदनीय कर्म का बंधक माना गया है । ( अजोगीन बंध ) अयोगी जीव वेदनीय कर्म का बंध नहीं करता है। क्यों कि अयोगी जीव के किसी भी कर्म का बंध नहीं होता है।
अब सूत्रकार उपयोग विषयकबंधद्वारको आंश्रित करके ज्ञानावरणीय आदिकर्मोके बांधने विषयमें कथन करते हैं - इसमें गौतमप्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि - ( णाणावर णिज्जं णं भंते । कम्मं किं सागारोवउप्ते बंधह ? अणगारो बंध ? ) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कौन से उपयोग वाला जीव करता है ? - क्या जो साकारोपयोग से युक्त होता है अर्थात् ज्ञानोपयोगवाला होना है - वह करता है ? या अनाकारोपयोगवाला होता है - अर्थात् दर्शनोपयोगवाला होता है - वह करता ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि - ( गोयमा) हे गौतम!
उभं अमृतियाना गंध उही पण उरता नथी. ( वेवणिज्ज' हेट्ठिल्ला वधति) વેદનીય કર્મોના બંધ ત્રણે ચેાગવાળા જીવા કરે છે, કારણ કે ત્રણે યાગવાળા भवाने वेहनीय उर्मना मध मानवामां आवेला छे, ( अजोगी न वध ) પણ અચેગી જી* વેદનીય કર્મોના બંધ કરતા નથી, કારણ કે અયાગી જીવને કઈ પણ કર્મના બંધ થતા નથી.
હવે ગૌતમ સ્વામી ઉપયેાગ દ્વારને અનુલક્ષીને જ્ઞાનાવરણીય આફ્રિ भौना म'धना विषयभां महावीर अलुने भा प्रभारी प्रश्न पूछे छे - ( जाणा• वरंणिज्ज' 'णं भेते ! कम्म कि सागारोवउत्ते घधइ ? अणागारोवउत्ते वधइ ? ) હે ભદન્ત | જ્ઞાનાવરણીય કાઁના બંધ કયા પ્રકારના ઉપયોગવાળા જીવ કરે છે? શું સાકાર ઉપયોગવાળા છત્ર ( જ્ઞાન પચેાળવાળા જીવ દશનાપયેાગવાળા જીવ) તેના ઈંધ કરે છે ?