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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०६ उ०३ सू०४ कर्मस्थितिनिरूपणम् ९२३ अथ योगविषयकबधद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-'णाणावरणिज्जं भंते कम्म किं मणजोगी बंधइ ? वयजोगी बंधइ ? कायजोगी बंधइ? अयोगी बंधइ ? हे भदन्त ! ज्ञानावरणीयं कम किम् मनोयोगी वध्नाति ? किं वचोयोगी बध्नाति ? किं काययोगी वध्नाति ? किं वा अयोगो वध्नाति ? । भगवानाह-'गोयमा ! हेद्विल्ला तिन्नि भयणाए' हे गौतम । अधस्तनाः आद्यास्त्रयः मनोवचाकाययोगिनः भजनया कदाचिद् वध्नन्ति, कदाचिन्न वध्नन्ति, ये तावत् मनोवच काय. वे अज्ञानी जीव भजना से करते हैं-अर्थात् आयुकर्म के बंधकाल में आयु का बंध करते हैं और भिन्न कालमें उसका बंध नहीं करते हैं। ____ अब योगनिषयकबन्धदार को आश्रित करके गौतम प्रभु से पूछते हैं कि-(णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं कि मणजोगी व धइ ? वयजोगी पंधह ? कायजोगी बधइ ? अयोगी बंधइ ?) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध योगद्वार की अपेक्षा विचार करने पर कौनसा जीव करता है-क्या मनोयोग वाला जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? या वचनयोगवाला जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? या जो कायजोगवाला जीव है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? या जिसके इन तीनों योगों में से एक भी योग नहीं है ऐसा जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि-(गोयमा) हे गौतम ! (हेछिल्ला तिन्नि भयणाए ) आदि के तीनों तना पाम भापता महावीर प्रभु छ-(गोयमा !) हे गौतम ! (आउगवजाओ सत्त वि बधति) मति अज्ञानी मा ७ मायुमें सिवायना सात भाना ७ माधे छे. परंतु ( आउग भयणाए) अज्ञानी છ આયુકર્મને બંધ વિકલ્પ કરે છે. તેઓ આયુકર્મના બંધકાળે આયુને , બંધ કરે છે. અકાળે તેઓ તેને બંધ કરતા નથી. - હવે રોગવિષયકબંધદ્વારની અપેક્ષાએ ગૌતમસ્વામી મહાવીર પ્રભુને એ प्रश्न पूछे छे 3-णाणावरणिज्जणं भते ! कम्मं कि मणजोगी बधइ ? वयजोगी बधइ ? कायजोगी बधइ ? अयोगी बंधइ ?) योगदान दृष्टि से विया२ ४२ता કયા ગવાળે જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે? શું મને ગવાળે જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે ? કે વચન ગવાળે જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બધે છે? કે કાયયેગવાળો જીવ બાંધે છે કે અગી જીવ ( આ ત્રણે રોગમાંથી એક પણ યુગ ન હોય એવો જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે? तो वाम मापता महावीर प्रभु ४ छ-(गोयमा !) गौतम ! (हेद्विल्ला तिण्णि भयणाए) पडसा ऋण योगा !-भनया, पयन
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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