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प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ ० ३ ० ४ कर्मस्थितिनिरूपणम् भगवानाह-गोयमा ! इत्थी सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, हे गौतम ! स्त्री स्यात् कदाचित् बध्नाति, स्यात् कदाचिन वध्नाति, एवं तिन्नि विभाणियन्या' एवं रीत्या अनया त्रयोऽपि स्यपि पुरुषोऽपि, नपुंसकोऽपि कदाचिद् वध्नाति, कदाचिन वध्नाति, इति रीत्या भणितव्याः वक्तव्याः ‘णोइत्थी-णोपुरिस-णोनपुंसओ न बंधइ' नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसको जीव: आयुष्यं कर्म न बध्नाति, अर्थभावः-एकत्र भवे सकृदेव आयुषो बन्धात् स्त्रीपुरुषादित्रयं वन्धकाले बध्नाति, अवन्धकाले तु न बध्नाति अत एवोक्तम्-'सिय बंधइ सिय नो बंधइ ' इति । बंधह, पुच्छा) हे भदन्त ! आयुकर्म का बंध कौन करता है? क्या स्त्री आयुकर्म का बंध करती है ? या पुरुष आयुकर्म का बंध करता है ? या नपुंसक आयुकर्म का बंध करता है ? इस प्रकार से यह गौतम का प्रश्न है। इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (इत्थी सिय बंधह, सिय नो वंधह) स्त्री आयुकर्म का कदा. चित् बंध करती है और कदाचित् बंध नहीं भी करती है । ( एवं तिनी वि भाणियव्वा ) इसी तरह से पुरुष और नपुंसक के विषय में भी जानना चाहिये । अर्थात् पुरुष आयुकर्म का बंध करता भी है और नहीं भी करता है-तथा नपुंसक भी आयुकर्म का बंध करता भी है और नहीं भी करता है। इसका भाव यह है कि एक भव में आयुकर्म जीव एक ही बार बांधता है अतः जब आयुकर्म के बंध होने का समय आताहैतब ही आयुकर्म का बंध जीर करता है। और जब बंध का समय नहीं होता-तब आयुकर्म का जीव बंध नहीं करता है । इसी भाव को लेकर पुच्छा) महन्त ! मायुभना भ ४रे छ१ शु श्री मायुभिना બંધ કરે છે કે પુરુષ આયુકર્મને બંધ કરે છે? કે નપુંસક તેને બંધ કરે છે ?
આ પ્રકારના ગૌતમના પ્રશ્નનો જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે– " गोयमा !" गौतम! ( इत्थी सिय बधइ, सिय नो बंधइ) श्री मायु. ४मना मध या२३ ४२ छ भने ४यारे नथी ५५ ४२ती, (एवं तिन्नी वि भाणियव्वा) का प्रमाणे पुरुष मन नपुंसना विष पण समा. शटले કે પુરુષ આયુકર્મને બંધ કરે છે પણ ખરે અને નથી પણ કરતે, નપુંસક પણ આયુકમને બંધ કયારેક કરે છે અને કયારેક કરતું નથી. તેનું તાત્પર્ય એ છે કે-એક ભવમાં આયુકર્મ જીવ એક જ વાર બાંધે છે, તેથી જ્યારે આયુકર્મને બંધ થવાને સમય આવે છે ત્યારે જ જીવ આયુકમેને બંધ કરે છે, અને જ્યારે બંધને સમય હોતું નથી ત્યારે જીવ मायुभाना मरता नथी. मेरी मापने अनुदान “सिय बंधइ, सिय
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