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भगवतीसरे स्तनास्त्रयो वघ्नन्ति, केवलदर्शनी भजनया । ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कर्म किं पर्याप्तको बध्नाति, अपर्याप्तको बध्नाति, नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तको वध्नाति ? गौतम ! पर्याप्तको भजनया, अपर्याप्तको बध्नाति, नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तको न बध्नाति, एवम् आयुष्कवर्जाः सप्ताऽपि, आयुष्कम् अधस्तनौ वरणीय कर्म का बंध नहीं करता है। इसी तरह से वेदनीय कर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों के पांधने के विषय में भी जानना चाहिये। (वेयणिज्ज हेछिल्लो तिन्नि बंधति, केवलदसणी भयणाए) वेदनीय कर्म का बंध चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी ये तीन तो करते हैं परन्तु केवलदर्शनी में भजना-वह करता भी है और नहीं भी करता करता है । (गाणावरणिज्ज णं भंते ! कि पज्जत्तओ बंधह, अपज्जत्तओ धंधा णो पज्जत्तय जो अपजत्तओ बंधइ) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या पर्यातक जीव बांधता है ? कि अपर्याप्तक जीव बांधता है ? अथवा जो नोपर्यातक जीव है वह बांधता है कि जो नोअपर्याप्तक जीव है, वह घांधता है? (गोयमा ) हे गौतम! (पजत्तए भषणाए,अप्पजत्तओ बंधह,णी पजत्तय-णो अपज्जत्तो न बंधह) पर्याप्तक ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता भी है और नहीं भी करता है। परन्तु जो अपर्याप्तक जीव है-वह तो ज्ञानावरणीय कर्मका बंध करता ही है। इसी तरहसे जो नोपर्याप्तक और नो अपर्याप्तक जीव हैं वे ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं करते हैं
જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરતે નથી વેદનીય કર્મ સિવાયના સાત કર્મો બાંધવાના વિષયમાં પણ આ પ્રમાણે જ સમજવું.
(वेयणिज्ज हेदिल्ला तिन्नि वधति, केवलदसणी भयणाए) वहनीय भनी બંધ ચક્ષુદશની, અચક્ષુદર્શની અને અવધિજ્ઞાની છે તે કરે છે, પણ કેવલદર્શનવાળો છવ વેદનીય કર્મને બંધ કરે પણ છે અને નથી પણ કરતા.
ण.णावरणिज्ज भते ! कम्मं कि पज्जत्तभो बधइ, अपजत्तओ बधइ, णो पज्जत्तय, णो अपज्जत्तओ बंधइ ?) 3 महन्त ! ज्ञानावरणीय भशु पयर्यात છા બ ધે છે ? કે અપર્યાપ્તક જીવ બાંધે છે કે તે પર્યાપ્તક જીવ બાંધે છે કે નો અપર્યાપક જીવ બાંધે છે?
(गोयमा ! ) 8 गौतम! (पज्जत्तए भयणाए, अपज्जत्तओ बधइ, णो पज्जत्तय-णो अपज्जत्तओ न बंधई) पर्यात १ ज्ञानावरणीय में मांधे छ અને નથી પણ બાંધતે, પણ અપર્યાપ્તક જીવ તે જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે જ છે. ને પર્યાપક અને તે અપર્યાપક જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરતા