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प्रमैन्द्रि टीका० सू० ४ श० ६ उ० ३ कर्म स्थितिनरूपणम
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एवम् आयुष्क वर्जाः सप्तापि, आयुष्कम् अधरतनौ द्वौ भजनगा, उपरितनो न नाति, ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त । कर्म किं चक्षुर्दर्शनी बध्नाति, अचक्षुर्दर्शनी नाति अवधिदर्शनी बनाति, केवलदर्शनी वध्नाति ? गौतम | अधस्तनात्रयो भजनया, उपरितनो न वध्नाति, एवं वेदनीयवर्णाः सप्ताऽपि वेदनीयम् अध
करते हैं। (एवं आउगज्जाओ सप्तवि, आउगं हेडिल्ला दो भगणाए उबरिल्ले न बंधइ ) इसी तरह से आयुकर्म को छोड़कर बाकी के सात कर्मों 'के बंध करने के विषय में जानना चाहिये। आयु कर्म का बंध जो भवसिद्धिक है वे तथा जो अभवसिद्धिक हैं वे करते भी हैं और नहीं भी करते हैं। पर जो भवसिद्धिक हैं, नो अभवसिद्धिक हैं वे आयुकर्म का बंध नहीं करते हैं । ( णाणावर णिज्जं णं भंते ! कम्मं किं चक्खुदंसणी बंध ? अवसणी बंधइ, ओहिदंसणी बंधइ ? केवलदंसणी बंध ?) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध क्या चक्षु दर्शनवाला जीव करता है ? या जो अचक्षुदर्शनवाला जीव है वह करता है ? या जो अवधिदनिवाला जीव है वह करता है ? यो केवलदर्शनवाला जो जीव है वह करता है ? ( हेडिल्ला तिष्णि भयणाए, उवरिल्ले न बंधइ, एवं वेद्यणिज्जवज्जाओ सत्त वि) हे गौतम! नीचे के तीन-चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी ये तीन- ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करते भी हैं, नहीं भी करते हैं । तथा ऊपर का जो केवलदर्शनजीव है वह ज्ञाना
( एवं आउगवज्जाओ सत्त वि, आउगं हेट्ठिला दो भयणाए, उवरिल्ले न बधइ ) आयु सिवायना साते अभेना मध विषे याशु या प्रमाणे સમજo, ભવસિદ્ધિક અને અભવસિદ્ધિક જીવેા આયુકમના અધ કરે પણ છે અને નથી પણુ કરતા. પણ ના ભવસિદ્ધિક જીવા અને ના અલસિદ્ધિક જીવા આચુકમના ખધ કરતા નથી.
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( णाणावर णिज्ज णं भते ! कम्म कि 'चक्खुद सणी वधइ ? अचक्खुद सणी as ? ओहिदणी बंधइ ? केवलद सणी बधइ ? ) हे लडन्त ! ज्ञानावरणीय કમના ખધ શું ચક્ષુ-દનવાળા છત્ર કરે છે ? કે અચક્ષુ-દર્શનવાળા જીવ કરે છે ? કે અવધિ-દશનવાળા જીવ કરે છે ? કે કેવળ- દશનવાળા જીવ કરે છે ?
( हे हिला तिष्णि भयणाए, उअरिल्ले न वधइ, एवं वैयणिज्जवज्जाओ सत्त वि.) હું ગૌતમ ! ચક્ષુદČની, અચક્ષુદની અને અધિદશની જીવા જ્ઞાનાવરણીય ક્રમના અધ કરે છે પણ ખરાં અને નથી પણુ કરતા, પરંતુ કૈવલ દનવાળા