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प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ६ उ० ३ १०५ कर्मस्थितिनिरूपणम् ८८७ द्वौ भजनया, उपरितनो न बध्नाति, ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कर्म किं भाषको बध्नाति, अभापको वध्नाति ? गौतम | द्वावपि भजनया, एवम् वेदनीयवर्जा: सप्ताऽपि, वेदनीयं भापको वध्नाति, अभाषको भजनया । ज्ञानावरणीयं खलु (एवं आउगवज्जाओ सत्तवि) इसी तरहका कथन आयुको छोडकर शेष सात कर्मों को बांधने के विषयमें भी जानना चाहिये । (आउगं हेहिल्ला दो, भयणाए, उवरिल्ले न बंधइ) आयुका बंध नीचे के ये पर्यातक और अपर्याप्तक दो जीव करते भी हैं और नहीं भी करते हैं। परन्तु जो नो पर्याप्तक और नो अपर्याप्तक जीव हैं, वे इस आयुकर्मका बंध नहीं करते हैं। (णाणावरणिज्जं णं भंते! कम्मं किं भासए बधह ? अभामए बंधइ ? ) हे भदन्त ? भाषकजीव ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता है ? कि अभाषक जीव ज्ञानावरणीय कर्म को बांधता है (गोयमा) हे गौतम! (दो वि भयणाए) ये दोनों भी ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करते भी हैं और नहीं भी करते हैं। इस तरह यहां भजना मानना चाहिये (एवं वेणिज्जवज्जाओ सत्त वि), इस तरह से वेदनीय कर्म को छोडकर सातों कर्मों को बंध करने के विषय में भी जानना चाहिये। (वेयणिज्ज भासए बंधइ ) वेदनीय कर्म का बंध भाषकजीव करता है। (अभासए भयणाए) अभाषक जीव वेदनीय कर्म का वंध भंजना से करता नथी. ( एवं आग वज्जाओ सत्त दि) मायुधम सिवायन सात मगधना विषयमा ५४ मा प्रमाणे समन. (आगं हेडिल्ला दो भयणाए, उवरिल्ले नबंध) मायुभन मध पर्याप्त मान मर्यात ७ ४रे पण छ मन નથી પણ કરતા. પરંતુ તે પર્યાપ્તક અને ને અપર્યાપ્તક જી આયુકર્મને બંધ કરતા નથી.
(णाणावरणिज्जणं भते ! कम्मं कि भासए बंधइ, अभासए बधइ ?) હે ભદન્ત! શું ભાષક જીવ જ્ઞાનાવરણીય કમને બંધ કરે છે? કે અમાષક જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરે છે?
(गोयमा !) 0 गौतम! (दो वि भयणाए) भन्ने वित કમને બંધ કરે છે એટલે કે ભાષક અને અભાષક જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ मांधे छ पY मने नथी पर मांधता. (एवं वेदणिज्जवज्जाओ सत्त वि) વેદનીય કર્મ સિવાયના સાતે કર્મબંધના વિષયમાં પણ તે પ્રમાણે જ સમજવું. ( वेयणिज भासए बधई) वहनीय मना मध मा ७१ ४रे छ, ( अभा
सए भयणाए) पर समाप वहनीय मना मध ४रे ५ परे। 'भने नथी ५ ४२तो.