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भगवती सूत्रे
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अपज्जवसिए ' तो सादिकः - अपर्यवसितः, 'णो अणाइए सपज्जबसिए ' नो अनादिकः पर्यवसितः, ' णो अणाइए अपज्जबसिए ' नो वा अनादिकः अपर्यत्रसितो भवति ' ताणं जीवाणं कम्मोरचए पुच्छा ? ' तथा खलु जीवानां कर्मोप चयः किं सादिकः सपर्यवसितः, नो सादिकः अपर्यवसितः, नोचा अनादिकः सपवसितः न वा अनादिक: अपर्यवसितो भवति ? इति पृच्छा मनः । भगवानाह - 'गोयमा ! अत्थेगइया जीवाणं कम्मोवचए साइए सपज्जबसिए, ' हे गौतम |
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माइए अपज्जबसिए) सादि अनन्त नहीं कहा है ( जो अणाइए सपज्ज वसिए) अनादि सान्त नहीं कहा है और ( णो अणाइए अपज्जवसिए) न अनादि अनन्त ही कहा है ( तहा णं जीवाणं कम्मोच्चए पुच्छा ) उसी तरह से जीवों के जो कर्मोपचय-कर्मबंध होता है उस विषय में भी मेरा ऐसा ही पूछना है कि जीवों का कर्मोपचय क्या सादि सान्त ही होता है ? सादि अपर्यवसित नही होता है ? अनादि सपर्यवसित नहीं होता है ? और अनादि अपर्यवसित नहीं होता क्या ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि ( गोयमा) हे गौतम । वस्त्र के पुतलोपचय की अपेक्षा जीव के कर्मबंध में विशेषता है- जो इस प्रकार से है - ( अत्थेगयाणं जीवार्ण कम्मोवचए साइए सपज्जसिए) किननेक जीव ऐसे हैं कि जिनका कर्मोपचय-कर्मबंध सादि और सान्त है, यद्यपि सिद्धान्त की दृष्टि से समस्त जीवों का कर्मोपचय अनादि कहा
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सान्त होय छे, ( णो साइए अपज्जवसिए) साहि अनंत होतो नथी, ( णो अणाइए सपज्जवसिंए ) अनाहि सान्त होतो नथी, भने ( णो अणाइए अपज्जवसिए) अनादि अनंत होतो नथी, ( तहाणं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा ) એજ પ્રમાણે જીવેાના કોપચય ( કમબંધ ) વિષે પશુ હું એજ જાણવા માગુ' છું કે શુ' જીવાને કૉંપચય સાદિ સાન્ત હાય છે? શું તે સાદિ અનંત હાતા નથી? શું તે અનાદિ સાન્ત હાતા નથી ? શું તે અનાદિ અનંત હાતા નથી ?
तेनो भवाण आायता भहावीर अनु अहे छे-" गोयमा ! " हे गौतम ! વજ્રનાં પુદ્ગલાપચય કરતાં જીવેાના કર્માંધમાં નીચે પ્રમાણે વિશેષતા છે— ( अत्येगइयाणं जीवाणं कम्मोवचए साइए सपज्जवसिए) डेंटला लवा मेवां હાય છે કે તેમના કર્માંપચય (કબંધ) સાદિ અને સાન્ત હાય છે. જો કે