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________________ દર્દÈ भगवती सूत्रे टीका- 'वस्थस्स णं भते ! पोग्गलोचचए कि साइए सपज्जवसिए ?' गौतमः पृच्छतिः - हे भदन्त ! वस्त्रस्य खलु पुद्गलोपचयः किं सादिक: आदिना सहितः, सपafed पर्यवसितेन पर्यवसानेन सहितः सान्तः ११ अथवा 'साइए अपज्जवसिए' सादिक:- अपर्यवसितः अन्तरहितः २ १, अथवा ' अणाइए सपज्जवसिए' अनादिकः - आदिरहितः, सपर्यवसितः सान्तः ३ ?, अथवा 'अणाइए अपज्जवसिए : ' अनादिकः पर्यवसितः ४ किम् ? भगवानाह - ' गोयमा ! वस्थस्स णं पोग्गलोवचए टीकार्थ- सूत्रकार ने जीवों के धर्मपुद्गलोपचय के दृष्टान्तत्व के विषय में वस्त्रपुलोपचय के दृष्टान्त से विशेषता प्ररूपित करने के लिये ( चत्थस्ल णं अंते ! ) इत्यादि सूत्र कहा है- इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि ( वत्थस्स णं भंते । पोगगलोचचए कि साइए सपज्जवसिए) हे भदन्त ! वस्त्र का जो पुद्गलोपचय है वह क्या सादि सान्त है ? अथवा - (साइए अपज्जनसिए) सादि अनन्त है ? अथवा - ( अणाइए सपज्जबसिए) अनादि सान्त है ? अथवा - (अणाइए अपजवसिए) अनादि अनन्त है ? जो आदि- प्रारम्भ - सहित होता है उसका नाम सादि और जो पर्यवसान-अन्त सहित होता है वह सपर्यवसित होता है | तथा जो अन्त रहित होता है वह अपर्यवसित होता है तात्पर्य यह है कि यहां परवत्र विषय में ऐसे ये चार प्रश्न गौतमस्वामी ने प्रभु से पूछे हैं । इनका उत्तर देने के लिये प्रभु ने उनसे कहा (गोयमा) हे ટીકા-જીવાનાં કર્મ પુદ્ગલેાપચયની સાદિ સાન્તતા આદિનું સૂત્રકારે વસ્ત્રનાં પુદ્ગલેાપચયના દૃષ્ટાન્ત દ્વારા આ સૂત્રમાં નિરૂપણ કર્યું છે, અને જીવાનાં કર્મ પુદ્ગલેાપચયમાં રહેલી વિશેષતાનું આ સૂત્રમાં નિરૂપણ કર્યુ છે. गौतम स्वामीना प्रश्न - ( वत्थस्स णं भते ! पोग्गलोवचए किं साइय सप अजवसिए ? ) हे लहन्त ! वनां युद्धसानो उपयय ( वृद्धि, भाव ) शु साहि सान्त होय छे ? अथवा ( साइए अपज्जवखिए १ ) साहि अनंत हाय छे ? अथवा ( अणाइए सपज्जवसिए १ ) मनाहि सान्त होय छे ? " अथवा ( अणाइए अपज्जवलिए १ ) अनादि अनंत होय छे ? ( साहि' એટલે આદિ ( પ્રારંભ ) સહિત અને સપ વસિત અથવા સાન્ત' એટલે અન્ત સહિત, ( અપર્યવસિત ’ એટલે અન્ત રહિત ) અહીં વસનાં પુલ્લેપચયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામીએ ઉપર મુજબ ચાર પ્રશ્નો મહાવીર પ્રભુને પૂછ્યા છે. હવે તેના જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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