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प्रचन्द्रिका टी० श० ६ उ० ३ ३ कर्थ पुलोपचयस्वरूपम्
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तत् केनार्थेन ? गौतम ! नैरयिक- तिर्यग्योनिक- मनुष्य- देवाः, गतिम् - आगतिं प्रतीत्य सादिकाः सपर्यवसिताः सिद्धा गतिं प्रतीत्य सादिकाः अपर्यवसिताः, भवसिद्धिका लब्धि मतीत्य अनादिकाः सपर्यवसिताः, अभवसिद्धिकाः संसारं प्रतीत्यानादिका अपर्यवसिताः, तत् तेनार्थेन० ॥ ० ३ ॥
गौतम ! ( अत्थेगइया साइया सपज्जवसिया, चत्तारि वि भाणियच्चा कितनेक जीव ऐसे हैं जो सादि सान्त हैं, कितनेक जीव ऐसे हैं जो सादि अनन्त हैं । कितनेक जीव ऐसे हैं जो अनादि सान्त हैं और कितनेक जीव ऐसे हैं जो अनादि अनन्त हैं । इस प्रकार से यहां चारों भंग कहना चाहिये । ( से केणट्टेणं० ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? (गोयमा ! नेरइया तिविखजोणिया मणुस्सा देवा गइमागड़ पहुच साइया, सपज्जबसिया सिद्धा गई पहुच साइया अपज्जवसिया, भवसिद्धिया लद्धिं पहुंच अणाइया सपज्जवसिया, अभवसिद्धिया संसारं पडुच अणाइया अपज्जबसिया से लेणट्टेणं०) हे गौतम! नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव गति आगति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं । सिद्ध जीव सिद्ध गति की अपेक्षा से सादि अनन्त हैं । भवसिद्धिक जीव लब्धि की अपेक्षा से अनादि सान्त हैं और अभवसिद्धिक जीव संसार की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं ।
( गोयमा ! ) हे गौतम ! ( अत्थेगइया साइया सपज्जवसिया, चत्तारि वि भाणियव्वा ) टला लवो साहि सान्त होय छे, डेंटला वो साहि अनंत હાય છે, કેટલાક જીવા અનાદિ સાન્ત હાય છે અને કેટલાક જીવો અનાદિ मनांत होय छे. या रीते अडीं यारे लग ( विठल्यो ) अहेवालेामे. ( से केणट्ठेण ं० १) हे सहन्त ! आप शा अरणे मेवु हो छो ?
( गोयमा ! नेरइया तिरिक्खजोणिया मणुस्सा देवा गइमागई पडुच्च साइया सपन्जवसिया, सिद्धा गई पडुच्च साइया अपज्जवासया, भवसिद्धिया लद्धि पडुच्च अणाइया सपज्जवसिया, अभवसिद्धिया संसारं पडुच्च अणाइया अपज्जव सिया से तेणट्ठेण ) हे गौतम! नार, तिर्यथा, भनुष्यो भने देवगतिना लवेाने નારક આદિ ગતિમાં આવવાને કારણે સાદિક કહ્યા છે અને નારક આદિ ગતિએમાંથી તેઓ નીકળવાના હાવાથી તેમને સાન્ત કહ્યા છે. સિદ્ધ જીવ સિદ્ધ ગતિની અપેક્ષાએ સાદિ અનંત છે, ભવસિદ્ધિક જીવ લબ્ધિની અપે ક્ષાએ અનાદિ સાન્ત છે અને અભવસિદ્ધિક જીવ સંસારની અપેક્ષાએ અનાિ अनंत छे, हे गौतम | ते अर में मेवु धुं छे.