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प्रमेयन्द्रिका टीका २० ५ ७० ९ ० ५ देषलोकनिरूपणम् गाथा--'किमिदं राजगृहमिति च उद्घोतोऽन्धकारः समयश्व,
पार्थान्तवासिपृच्छा, रात्रि दिवानि देवलोकाश्च ॥ तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू० ५ ॥
टीका--'कइविहा गंभंते ! देवलोगा पण्णत्ता' गौतमः पृच्छति--हे भदन्त ! कतिविधाः कियत्मकाराः खलु देवलोकाः प्रज्ञप्ताः कथिताः ? भगवानाइ -'गोयमा ! चउबिहा देवलोगा पन्चत्ता' हे गौतम ! चतुर्विधाः चतुम्मकाराः खलु देवलोकाः प्रज्ञप्ताः कथिताः 'तं जहा भवणवासी-वाणमंतर-जोइसिय"राजगृह नगर यह क्या है ? दिनमें उद्योन और रात्रिमें अंधकार क्यों होता है ? समय आदि रूप काल का ज्ञान किन जीवों को होता है और किन जीवों को नहीं होता है ? रात्रि और दिवस के प्रमाण में श्री पार्श्वनाथ जिन के प्रशिष्यों के प्रश्न ? देवलोक संबंधी प्रश्न"इतने विषय इस उद्देशक में आये हैं। (सेवं अंते ! सेवं भंते ! त्ति) हे भदन्त ! आपका कहा हुआ भाव लषा लत्य ही है-सर्वथा सत्य ही है।
टीकार्थ-(देवलोकों में उत्पन्न हुए) ऐसी बात पहिले कही गई है -सो देवलोक के स्वरूप को निरूपण करने के लिये सूत्रकार यहां पर कहते हैं इसमें गौतम ने उनसे यह पूछा है कि (काविहां णं भंते ! देवलोगा पन्नत्ता) हे भदन्त ! देवलोक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने उनसे कहा-(गोयमा! चचिहा देवलोगा पण्णत्ता) हे गौतमी देवलोक चार प्रकार के कहे गये हैं-भवनवासी વિષયની સંગ્રહ ગાથાનો અર્થ આ પ્રમાણે થાય છે- “રાજગૃહ નગર કયે પદાર્થ છે? દિવસે પ્રકાશ અને રાત્રે અંધકાર કેમ હોય છે સમય આદિરૂપ કાળનું જ્ઞાન ક્યા ને હોય છે અને ક્યા જીને હેતું નથી ? રાત્રિ અને દિવસ વિષયક શ્રી પાર્શ્વનાથ જિનેન્દ્રના પ્રશિષ્યોના પ્રશ્ન ? દેવક સંબંધી પ્રશ્ન” આટલા વિષયનું આ ઉદ્દેશકમાં નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે. " सेवं भते ! सेवं भंते ! ति" महन्त ! मापनी बात सर्वथा सत्य छ, આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ જ છે
Ai-पूर्व ५४२५नु मतिम पाय " वक्षोभ पन या " सर्व છે. તેથી દેવકના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરવાને માટે સૂત્રકારે નીચેના પ્રશ્નોત્તર माया छे:
गौतम स्वामी महावीर प्रभुन धूछे छे. (कइविहाण' भते। देवलोगा पन्नत्ता १) महन्त ! Rals en l Fai छ ?
6dP-गोथमा! पविहा देवलोगा पण्णचा गौतम क्सs