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भंगवती जोतिसिया पंचविहा, वेनाणिया दुविहा, गाहा-किमियं राय. गिहं त्ति य, उज्जोए, अंधयार, समए य पासंतिवासिपुच्छा, राइंदियदेवलोगा य, सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ सू०५॥
छाया-कतिविधाः खलु भवन्त ! देवलोकाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! चतुर्विधाः देवलोकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-भवनवासि-वानव्यन्तर-ज्योतिक-चैमानिक-भेदेन। भवनवासिनो दश विधाः, बानव्यन्तराः अष्टविधा, ज्योतिष्काः पञ्चविधाः वैमानिका द्विविधाः,
देवलोक वक्तव्यता(कइविहा णं) इत्यादि। नार्थ-(कविता णं भंते ! देखलोगा पन्नता) हे भदन्त ! देवलोक कितने प्रकार के कहे गये हैं ? (गोयमा ! चउबिहा देवलोगा पन्नत्ता) है गौतम ! देवलोक चार प्रकार के कहे गये हैं। (तं जहा) वे इस प्रकार से है (भवणवासी-चाणमंतर-जोइलिय-माणिय भेएणं) भवनवासी ? वाणव्यन्तर २, ज्योतिपिक ३, और वैमानिक ४ (भवनवासी दसविहा पन्नत्ता) भवनवासीदेव दस प्रकार के कहे गये हैं (वाणमंतरा अट्ठविहा) घाण व्यन्तरदेव आठ प्रकार के हैं। (जोइसिया पंचविहा) ज्योतिषिक देव पांच प्रकार के है (वेमाणिया दुदिहो) वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं। (किषियं रायगि त्ति य उज्जोए अंधयारसमए य, पासंति वासिपुच्छा राइंदिय देखलोगाथ) इस उद्देशन में प्रतिपादित विषय की संग्रह गाथा यह है-इसमें यह प्रकट किया गया है कि
हवानी तव्यता:"कइविहाण" त्याह
सूत्राथ-(काविहाण भते! देवलोगा पन्नत्ता ?) 8 महन्त ! व. alsना प्रा२ मा छ १ ( गोयमा ! चउव्विहा देवलोगा पन्नता) गौतम! हेक्सा यार प्रानi छ. ( जहा) तयार प्रारी या प्रमाणे छ(भवणवासी, वाणम तर, जोइसियवेमाणिय भेएण) (१) सपनवासी, (२) पान०यन्त२, (3) ज्योतिषि मन (४) वैमानिस मेथी (भवणवासी दसविहा पन्नत्ता) सपनयासी हे। इस प्रारना ४ा छ, (वाणमतरा अदुविहा) पानव्यन्तरे। म प्रायना हा छ, (जोइसिया पंचविहा) यातिषि: हेवे। यांय ! ४॥ छ ग (वेमाणिया दुविहा) वैमानि । R AURना ४॥ छ (किमिय रायगिह ति य उज्जोए अधयार समए य, पास तिवासि पुच्छो राइदिय देवलोगा य) मा देशभर प्रतिपान ४२वामां मायुं छे, मे