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भगवतीहर्ष वेमाणियभेएणं । तद्यथा-भवनवासि-धानव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिक भेदेन तत्र-'भवणवासी दसविहा' भवनवासिनोऽसुरकुमारादिकाः दशविधाः प्राप्ता, 'वाणमंतरा अढविहा' वानव्यन्तराः पिशाचादिका अष्टविधाः प्रक्षसाः, एवं 'जोइसिया पंचविहा' ज्योतिष्काः चन्द्रसूर्यादयः पञ्चविधाः प्राप्ताः, 'वेमाणिया दुविहा' वैमानिकाः कल्पोपन-कल्पातीतभेदेन द्विविधाः प्रज्ञता:- उद्देशकार्य संग्रहाय गाथामाहगाहा-"किमिदं रायगिहं ति य उज्जोए अंधयार-समए य,
पासंति वासिपुच्छा राइंदिय देवलोगा य"॥१॥ किमिदं राजगृहं नगरमिति च इदं राजगृहं किम् पृथिवी ? इत्यादिविचारचर्चा, ततः कथम् उद्योतः दिवसे प्रकाशः, रात्रौ च अन्धकारः अत्र किचाणव्यन्तर, ज्योतिषिक और वैमानिक इनमें भवनवासी-दश प्रकार के हैं-उनके नाम ये हैं १ असुरकुमार २ नागकुमार ३ सुवर्णकुमार ४ विद्युत्कुमार ५ अग्निकुमार ६ दीपकुमार ७ उदधिकुमार ८ दिक्कुमार ९ वायकुमार और १० स्तनितकुमार वाणव्यन्तर आठ प्रकार के हैं, उनके नाम ये हैं-१ पिशाच, २ भूत, ३ यक्ष, ४ राक्षस, ५ किन्नर, ६किं पुरुष, ७ महोरग, और ८ गन्धर्व ।
ज्योतिषिक ५ पांच प्रकार के हैं-सूर्य १ चन्द्रमा २, ग्रह ३ नक्षत्र तारा ये उनके नाम हैं।
वैमानिक देव दो प्रकार के होते हैं-कल्पोपपन्न २ और दूसरे कल्पातीत अवशिष्ट पदों का अर्थ मूलार्थ में लिख दिया गया है इसी प्रकार संग्रह गाथा का भी अर्थ मूल का अर्थ करते समय लिखा जा यार ARi si छ. तयार पारी मा प्रभारी छ-(१) सपनवासी, (२) पानव्यन्त२, (3) न्योतिष मन (४) वैमानि
सनवासी वाना नीय प्रभारी स २ छ-(१) असुरशुभार, (२) नागभार, (3) सुपथ मार (४) विधुत्भार (५) मशिभार (6) द्वीपभार (७) धिभार, (८) हिशाभार (6) नभार (१०) स्तनितभार,
पाय-तर देवान मा २ छ-(१) पिशाय (२) भूत (3) यक्ष (४) राक्षस (५) २ (६) पुरुष (७) भा२0 (4) .
यातिषि वान पांय २ मा प्रमाणे छ-(१) सूर्य, (२) यन्द्र, (3) श्रई, (४) नक्षत्र मन (५) तारामा
वैभानिश वाना मे १२ छ-(१) ४८५पन्न, (२) ४८पातीत. બાકીનાં પદેને અર્થ સૂવાથમાં આપી દીધું છે. સંગ્રહગાથાને અર્થ