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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ५ ० १ सू० २ रात्रि दिवस स्वरूपनिरूपणम् ४५ रात्रिर्भवति । उक्तोपान्त्यमण्डलादारभ्य विलोमक्रमेण: व्यावर्तमानः सूर्यो यदा एकषष्टितममण्डले संचरति तदा सप्तदशमुहूर्त दिनमाने एकमुहूर्तापचयात् पोडशमुहूर्ती दिवसो भवति, रात्रिमाने चैकमुहूर्तपिचयात् चतुर्दशमुहूर्ता रात्रिर्भवति एवम् 'सोलसमुहुचाणंतरे दिवसे साइरेग चउदसमुडुत्ताराई ' पोडशमुहूर्तानन्तरो दिवसः सातिरेकचतुर्दशमुहूर्ता रात्रिर्भवति । एतावता उक्तोपान्त्यमण्डलादारभ्य विलोमतया प्रतिमण्डलं वहिः परावर्तमानो रविर्यदा द्विषष्टितममण्डले संचरति तदा उक्तषोडशमुहूर्तात्मकदिवसमाने किश्चिन्न्यूनपलचतुष्टयस्य हासेन तादृशपलचतुष्टयरहितपोडशमुहूर्ती दिवसो भवति, रात्रिमाने १८२ एकलो बयासी वें मंडल से लेकर विलोमक्रम से चलता चलता ६१ इकसठवें मंडल पर संवर करता है उस समय सत्तरह मुहूर्त दिन मान में से एकमुहूर्त का अपचय- ह्रास होने के कारण सोलह मुहूर्त का दिन मान होता है - और यह एक मुहूर्त का ह्रास जो सतरह मुहूर्त दिनमान में हुआ है रात्रि के मान में बढ जाता है इस कारण चौदह मुहूर्त का विमान कहा गया है। (ए) इसी तरह ( सोलह तामंनरे दिवसे साइरेगचउदसमुहन्ता राई) जब सोलह मुहूर्त से कम दिनमान होता है तब रात्रिमान कुछ अधिक चौदह मुहूर्त का होना है । इसका भाव यह है कि १८२ एकसो बयासी वें मंडल से लेकर विलामक्रम से चलता चलता सूर्य जब ६२ बासठ वें मंडल पर संचार करता है तब सोलह मुहूर्त वालेदिनमान में कुछ कम चारपल घट जाते हैं, इसलिये यहां पर दिवसनान कुछ कम चारपल से हीन सोलह मुहूर्त का कहा गया है और जितना मान છે કે જ્યારે સૂર્ય ૧૮ અઢારમાં મ`ડળથી વિલામક્રમે ચાલતા ચાલતા ૬૧ એકસઠ માં મંડળ પર સ`ચાર કરે છે, ત્યારે ૧૭ સત્તર મુના નિમાનમાં એક મુના ઘટાડો થવાથી ૧૬ સેાળ મુહૂર્તના દિવસ થાય છે, અને ૧૩ તેર મુહૂત'ના રાત્રિમાનમાં એક મુહૂર્તની વૃદ્ધિ થઇને ૧૪ ચૌ; સુહૂત'ની રાત્રિ બને છે. " एवं " मे४ रीते " सोलह मुहुताण तरे दिवसे, साइरेगा चउदस मुहुत्ता રાધે” જ્યરે ૧૬સેાળ મુદ્ભૂત કરતાં સહેજ ઓછા પ્રમાણવાળા દિવસ થાય છે, ત્યારે ૧૪ ચૌદ મુહૂત કરતાં એટલાં જ વધુ પ્રમાણ વાળી રાત્રિ થાય છે. આ પ્રમાણે કહેવાનું કારણ નીચે પ્રમાણે છે. જ્યારે સૂર્ય ૧૮૨ એકસેાખાસીમાં મડળથી વિલેામક્રમે ચાલતા ચાલતા દરખાસઠમાં મંડળ પર ત્યારે સેાળ મુહૂતવાળા દિનમાનમાં ચાર પળ કરતાં સહેજ સંચાર કરે છે આ ઘટાડા થઈ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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