________________
भगवतीम
यययययय, दीन पर उन्टेन आदिकाया असंख्य भागम्, च गुरु गर्व रायसम्बपिविनम् द्वन्द्रय-संक्रम- गजवान किना-यानी दिन-स्थिरतानां विचारणा तया
माधवन्ति
प्रश्नः, निरुपपदमपुर तथा मिहान विचारणा च कालापेक्षया पिता नेति ॥
42
पानी की
अपेक्षा
विकता, निर्धन्यत्र से नारवीसी अण्णव श्री क्षवाचना जीव की वृद्धि, हाम यथावस्थान के विषय में कान और पावस्थानव्य से प्रश्न का समाधान, विचार का प्रतिपादन, सिद्धों श्रीरस्थिरता से विषय में विचार, जीवों का सुर्वकाल कान, नाक जीवों की वृद्धि हाम और यथावस्थान के दि में नाक जीवों की वृद्धि और हाल जघन्य से एक समय से आलिका के असंख्य भागनक, तथा अव सतह से मान ही नरक के संबंध में पेन्द्रिय, श्रीणि चतुरिन्द्रिय, वापर ज्योतिषिय सौधर्म, ईशान आदि के दाम और की विचारणा तथा सिद्धों की भी
में
यी
सेविण जीवों के उप सचिन होने की और अपचय गति की नियम और पिसे उत्तर मित्रों
विशेष्यथन वर्धा व देवी की
२. म *
•
कलंकी कानि
ने
-
दिया ". मुलीने मन कोलामां गोध मे नयी वना समस्यानां भाग सुमी,
. I wi, si es १२० २२५८४५, ३० डिडिय मीटिंग अमृत निशान महिल
1
निि
प:
܀
च
alen
४, ४ लिय" २.