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भगवती सूत्रे
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णाभावेन छमस्थमाणं म्रियते करोति अकेवलित्यात् नतु अज्ञानमरणम् तस्य अवध्यादिज्ञानत्रत्वेन ज्ञानित्वात् । सेवं भंते ! सेवं भंते । त्ति ' तदेवं भदन्त ! तदेव भदन्त ! इति. हे भदन्त ! भाव सर्व सत्यमेवेति ॥ सू०८ ॥ इतिश्री - जैनाचार्य - जैनधर्म दिनाकर पूज्य श्री घासीलाल प्रतिविरचितायां भगवती सूत्रस्य प्रसेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां पञ्चमशतकस्य सप्तमोदेशकः समप्त ।।५-७॥
ऐसा अर्थ यहां समझना चाहिये इसी तरह से शेष तीन पदोंकी भी संगति जाननी चाहिये । अवधिज्ञान आदि ज्ञानवाला होने के कारण ऐसे आत्मा का मरण उपक्रम के कारण के अभाव से उद्मस्थमरणरूप होता है फिर भी झरथमरण अज्ञानमरणरूप जो नही कहा है-सो इसका कारण यह है कि यह मरण अवधि आदिज्ञानी का है अज्ञानी मिथ्यादृष्टि का नहीं | तथा उद्मस्थमरणरूप यह इस लिये है कि यह केवलज्ञानी का नही है । इस प्रकार प्रभु की देशना श्रवण कर गौतम ने उनसे कहा है भदन्त ! जैसा आपने प्रतिपादन किया है वह ऐसा ही है-हे भदन्त ! जैसा आपने प्रतिपादन किया है वह ऐसा ही है - हे भ दन्त ! आपका कथन सर्वथा सत्य हो है - इस प्रकार कर कर वे गौतम अपने स्थान पर विराजमान हो गये || सू० ८ ॥
श्री जैनाचार्य जैनधर्म दिवाकर श्री घामीलालजी महाराजकृत "भगवतीसूत्र " की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्या का पांचवे शतक का मानवां उद्देशक समाप्त ।। ५–७ ॥
છે, સ`પૂર્ણ રીતે જાણતા નથી, એવા અથ અહીં ગ્રહણ કરવા. એજ પ્રમાણે પછીનાં ત્રણ પદ્માના અર્થ પણ સમજવે! તેએ હાથમરણ મરે છે, કારણ કે તેએ અધિજ્ઞાન આદિ જ્ઞાનવાળા હોય છે. તેથી ઉપક્રમના કારણને અભાવે તેમનું મરણુ છદ્મસ્થ મરણુ ગણાય છે. વળી તેઓ અજ્ઞાની મિથ્યાદૃષ્ટિ હતા નથી તેથી તેમના મરણને અજ્ઞાન મરણુ કહી શકાય નહી. તે કેવળજ્ઞાની હાતા નથી તેમના મરણને કેવિલેમર પણ કહેતા નથી.
भगवाननी था अारनी देशना सांलजीने गौतम स्वाभीमे धुं “ सेवं भंते " त्याहि, दुलहन्त भायनी वात सत्य छे आये या विषयनुं ने अतिપાદન કર્યું તે યથાય છે આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને વંદણા નમસ્કાર કરીને તેમને સ્થાને મેસી ગયા. ! સૂત્ર ૮ u
જૈનાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત ‘ભગવતીસૂત્ર’ની પ્રમેયચન્દ્રિકા व्याभ्यानो यांयसां शतउनी सातभा उद्देश समाप्त ॥ ६-७ ॥