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मैचन्द्रिका टी००५४०७०७ नैरयिकादीनां सारंभानारंभादि निरूपणम् ५४९
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तत् तेनार्थेन तत्रैव । एवं यावत् स्तनितकुमाराः १ एकेन्द्रियाः यथा नैरयिकाः। द्धीन्द्रियाः खलु भदन्त ! किं सारम्भाः सपरिग्रहाः ? तदेव यावत् - शरीराणि परि गृहीतानि भवन्ति, वाद्यानि भाण्डामत्रोपकरणानि परिगृहीतानि भवन्ति, सचित्ताचित यावद् भवन्ति । एवं यावत्-चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकाः खलु भदन्त 12 तेणट्टेणं तहेव एवं जाव थणित्रकुमारा ) इस कारण हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि असुरकुमार देव आरंभ और परिग्रह सहित होते हैं आरंभ और परिग्रह से रहित नहीं होते हैं । इसी प्रकार ये यावत् स्तनितकुमारों के विषय में भी समझना चाहिये । ( एगेंदिया जहा रइया) जिस प्रकार से आरंभ और परिग्रह सहित होने का कथन 'नारक जीवों के विषय में किया गया है उसी तरह से आरंभ और परिग्रह सहित होने का कथन एकेन्द्रिय जीवों के विषय में भी जानना चाहिये । ( बेइंदियाणं भंते ! किं सारंभा, सपरिग्गहा ) हे भदन्त ! दो इंन्द्रिय जीव क्या आरंभ और परिग्रह सहित होते हैं ? ( तं चेव जाव सरीरा परिग्गहिया भवंति ) हे गौतम ! इन दो इन्द्रियों के विषय में वही पूर्वोक्त रूप से कथन कर लेना चाहिये यावत् उन्हों ने शरीर परिगृहीत किया है यहां तक । ( बाहिरिया - भंडमत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति एवं जाव चउरिंदिया ) बाहर में उन्हों के द्वारा भाण्ड, अमत्र एवं उपकरण ये सब परिगृहीन होते हैं । इसी तरह से यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में भी जानना चाहिये । (पंचिदियतिरिक्ख
जाव थणियकुमारा ) हे गौतम! ते भर में मेवु अछे है असुरकुभार દેવા આરભ અને પરિગ્રહથી યુક્ત હાય છે, તેઓ આરંભ અને પરિગ્રહથી રહિત નથી સ્તનિતકુમાર પન્તના દેવા વિષે પણ એજ પ્રમાણે સમજવુ.
( एगें दिया जहा नेरइया) नेम नार भवने भारल भने परिग्रहथी યુક્ત કહેલા છે, એજ પ્રમાણે એકેન્દ્રિય જીવાને પણ આરંભ અને પરિગ્રહથી युक्त सभवा. ( बेइंदियाणं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा ? ) डे लहन्त ! मे इन्द्रिय कवे। शुं भारंल भने परिग्रहथी युक्त होय छे ? ( तंचेव जाव खरी परिग्गहिया भवति ) हे गौतम! मे इन्द्रिय कवना विषयभां शु પૂર્વોક્ત કથન ગ્રહણ કરવું. “ તેમણે શરીર પીિહત કરેલાં હોય છે, ” આ - अथन पर्यन्त समस्त अथन गडी ग्रहण ४२ ( बाहिरिया - भंडमत्तोवगरणा परिगहिया भवति, एवं जाव चउर दिया ) महारथी तेमना वडे लांडे, अभत्र, અને ઉપકરાના પરિમહ કરાય છે. ચતુરિન્દ્રિય પર્યંન્તના જીવાના વિષયમાં भाट्ये मा अभागे ४ समन्वु. ( पंचिदिय - तिरिक्खजोगिया णं भंते । किं सारभा