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भगवती
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नदेव यात्रन् - कर्माणि परिगृहीतानि भवन्ति, टङ्काः कूटाः, शैलाः, शिखरिणः, मागमाराः परिगृहीता भवन्ति, जल-स्थल - विल- गुहा -लयनानि परिगृहीतानि भवन्ति, अनझर - निर्जर-चिल्ल-पलवल-वाणि परिगृतानि भवन्ति, अगडजोणिया णं भते ! कि सारंभा, सपरिग्गहा ) हे भदन्त | पंचेन्द्रिय तिर्यंच क्या आरंभ और परिग्रह सहित होते हैं ? ( तं चैव जाव कम्मा परिग्गड़िया भवति ) हे गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों को आरंभी और परिग्रही होने के विषय का कथन वही पूर्वोक्त रूप से यावत् कर्म परिगृहीन हैं यहां तक का कर लेना चाहिये । ( टंका - कूडा- सेला- सिहरी
भारा परिग्गहिया भवंति ) इनके द्वारा टङ्क - पर्वत, कूट पर्वत के शिखर, शैल-मुण्डपर्वत, शिखरी-शिखर-युक्त पर्वन और प्राग्भारथोड़े २ झुके हुए पर्वत, परिगृहीत किये हुए हैं । ( जल-थल - बिलगृह-लेगा परिग्गहिया भवंति ) ये जल, थल, बिल. गुफा और पहाड़ में उसे काट कर बनाये हुए घर इन सब को परिगृहीन किये रहते हैं । (उज्झर - निज्झर - चिल्लल-पल्लल, वप्पिणा परिग्गहिया भवंति ) उज्र - पर्वत से नीचे गिरते हुए पानी के झरनोंको, निर्झर - सामान्यझरनों को, चिल्लल - कीचड़ सहित जल, पल्वल - छोटे २ पोखरों का, खेतों वाले स्थानों को ये अपने आधीन किये रहते हैं । ( अगड-तडाग
परिगहिया ) लहन्त । शुं यथेन्द्रिय निर्यया मारल भने परिश्रद्धथी युन होय छे ? (तं चैव जात्र कम्मा परिगहिया भवति ) हे गौतम! आ વિષયમાં પણ પૂર્વોક્ત સમસ્ત કથન ગ્રહણ કરવું”, “ તેમના વડે ક્રમ પર गृद्धीत होय छे,' भट्टी सुधीनु उथन श्रद्धायु वु ( टौंका, कूडा, सेला, मिरी, पत्रमारा परिगहिया भवति ) यथेन्द्रिय तिर्थ थे। वडे ट ( पर्वत ), ईट ( पर्यंतना शिमरेश ), शैल ( भुंड पर्वत ), शिभरी ( शिमरवाणी पर्वत ) અને પ્રાગ્માર ( થેાડા ચેાડા ઝૂકેલા પતા ) આદિસ્થાનાના પરિગ્રહ કરવામાં आवे छे. (जल, थल, बिल, गुह, लेणा परिगहिया भवति ) ४ज, स्थज, બિલ ( ર ), ગુફા અને પર્વતને કોતરીને બનાવેલાં ઘરા, આદિ સ્થાનાને तेगना पडे परिवामां आवे छे. ( उज्झर, निज्दार, चिहल, पलल, घपिणा परिगदिया भवति ) Get (पर्यंत उपरथी नीचे पडतां ग्यांगो ), निश, ( सामान्य अनुगो ) त्रियो ( अहव मिश्रित नजाशयो ), पट्टवसेो ( चेोमश મહા માસીનળાં ખામેચિયાંએ ), અને ખેતરાવાળાં સ્થાનાને પેાતાને આધીન
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