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भगवतीस्त्र र्थेन ? । गौतम ? असुरकुमाराः खलु पृथिवीकार्य समारभन्ते, यावत्-त्रसकार्य 'समारभन्ते, शरीराणि परिगृहीतानि भवन्ति, कर्माणि परिगृहीतानि भवन्ति, भुवनानि परिगृहीतानि भवन्ति, देवाः देव्यः, मनुष्याः, मनुष्यः, तिर्यग्योनिका, तिर्यग्योनयः परिगृहीता भवन्ति, आसन-शयन-भाण्डा--ऽमत्रो-पकरणानि परिगृहीतानि भवन्ति-सचित्ता-ऽचित्तमिश्रितानि द्रव्याणि परिगृहीतानि भवन्ति, नहीं हैं । ( से केणद्वेणं ) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि असुरकुमार देव आरंभ और परिग्रह से युक्त हैं, आरंभ और परिग्रह से रहित नहीं हैं । ( गोयना ) हे गौतम । ( असुरकुमारा गं 'पुढधिकार्य समारंभनि, जाय तसकायं समारंभति) असुरकुमार देव पृथिवी कार्य का समारंभ करते हैं यावत् त्रसकाय का समारंभ करते हैं । (सरीरा परिग्गहिया भवति, कम्मा परिग्गहिया भवंति ) उनके 'बारा शरीर परिग्रहीत है। कर्म परिग्रहीत हैं (भवणा परिग्गहिया भंचंति ) भवन परिगृहीत हैं । (देवा देवीओ मणुस्सा, मणुस्सीओ,तिरि
खजोणिया, तिरिक्खजोणिणीओ परिग्गहिया भवंति ) देव, देवियों, 'मनुष्य, मनुष्यणियां, तिथंच, तिर्य चनियां ये सब परिगृहीत हैं। (आसण-सयण-भंडामत्तो-वगरणा परिग्गहिया भवंति) आसन, शयन, मांड, अमत्र और उपकरण ये सब उनके द्वारा ग्रहण किये हुए होते हैं । (सचित्ताचित्त मीसियाई दवाइं परिग्गहियाई भवंति) सचित्त, अचित्त एवं मिश्र द्रव्य उनके द्वारा परिगृहीत होते हैं । (से 'हथी २जित डता नथी. (से केणटेणं १) महन्त ! माय ॥ ॥२0 मधु કહે છે કે અસુરકુમારે આરંભ અને પરિગ્રહથી યુક્ત છે, તેનાથી રહિત નથી?
(गोयमा !) गौतम ! ( असुरकुमाराणं पुढविकायं समारंभाति, जाव तसकायं समारंभति ) मसुरशुमार है। पृथ्वीजयथा धने साय, पर्यन्तना 'वाना समान ४२ छे. (सरीरा परिगाहिया भवति, कम्मा परिग्गहिया भवति) तमना व शरीर परिडीत डाय छ, म परिगृहात डाय छ, (भवणा परिंग'हिया भवति ) मने सपने परिगृहीत लय छे. ( देवा, देवीजो, मणुस्सा, मंणुस्सीओ, तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणी भो परिग्गहिया भवति) वणी:भाव, દેવીઓ, મનુષ્ય, સ્ત્રીઓ, તિર્યંચે અને તિર્યંચણીઓને પણ પરિગ્રહ કરે ४३ छे. ( आसण, सयण, भंडामत्तो, वगरणा परिग्गहिया भवति) तमा आसन, 'शयन, His (२त्नभय पात्र), ममत्र (सुप भय पात्र ) भने ५४२ नि। परियड ४२ छ. ( सचित्ताचित्तमीसियाई दब्बाइं परिग्गहियाइं भवति ) सचित्त, मयित्त भने मिश्र द्रव्य तभनाथी प्र] ४२राय छे. (से वेणठेणं तहेव एवं