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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २० ५ उ०१ ०२ रात्रिदिवसस्वरूपनिरूपणम् २९ गौतमः पुनः पृच्छति-'जयाण जंबू०' इत्यादि । हे भदन्त ! यदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे 'मंदरस्स पन्धयस्स' मन्दरस्य पर्वतस्य 'पुरस्थिमे' पौरस्त्ये 'उकोसए' उत्कृष्टः 'अट्ठारसमुहुत्ते' अष्टादशमुहूर्वः 'दिवसे भवई' दिवसो भवति 'तयाणं' तदा खलु 'जंबुद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'पच्चस्थिमेण वि' पश्चिमेऽपि ' उक्कोसे गं' उत्कृष्टः अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ ' अष्टादशमुहूतों दिवसो भवति, अथ च 'नया णं' यदा खलु 'पच्चत्थिमेणं' पश्चिमे 'उक्कोसए' उत्कृष्टः सर्वाधिकः 'अद्वारसमुहत्ते ' अष्टादशमुहूर्तः 'दिवसे भवइ' दिवसो भवति 'तया णं' तदा खलु 'भंते ! ' हे भदन्त ! 'जंबुद्दीवे दीवे ' जम्बूद्वीपे द्वीपे 'उत्तरे' उत्तरभागे 'नाव-दुवालसमुहुत्ता' यावत् द्वादशमुहूर्ता — राई भवइ ?' रात्रि____अब गौतम प्रभु से दूसरी जगह से पूछते हैं-(जया ण) इत्यादि है भदंत ! (जया णं) जब (जंबुद्दीवे दीवे) जंबूदीप नामके द्वीप में (मं. दरस्स पचयस्स) मन्दर पर्वत की (पुरस्थिमे ) पूर्वदिशा में (उकोसए) उत्कृष्ट (अट्ठारसमुहूत्ते दिवसे भवइ) अट्ठारह मुहूर्त का दिवस होता है (तयाणं) तब (जंबुद्दीवे दीवे) जम्बूद्वीप नामके द्वीप में (पच्चत्थिमे. ण वि) पश्चिमदिशा में भी (उकोसए) सर्वाधिक (अट्ठारसमुहुत्ते) अठारह मुहूर्त का (दिवसे भवइ) दिन होता है इस तरह (जया णं ) जब (पच्चत्थिमेणं) पश्चिम में (उकोसए) उत्कृष्ट (अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ) अगरह मुहर्त का दिन होता है (तया णं) तब हे भदन्त ! (जंबुद्दीवे दीवे) जंबूद्वीप नामके द्वीप में (उत्तरे) उत्तर में-उत्तरभाग में (जाव) यावत् (दुवालसमुहुत्ता राई भवइ) बारह मुहर्त की रात्रि होती है क्या? यहां यावत् पद से (दक्षिणे जघन्यिका) इस पाठ का व मी या विष सेवा प्रश्न गौतभस्वामी पूछे छ-(जयाण मते) B महत! न्यारे (जबूद्दीवे दीवे ) दीपना (मैदररस पव्वयस्स) भर पतनी (पुरथिमे) पूर्व दिशामा (उकोसए) क्यारेमा धारे प्रमाण पाणी (Aiमामi aiमा ) ( अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ) १८ मदार मुश्त ना हिस थाय छे, (तया ण) त्यारे (जवूहीवे दोवे) दीपनी (पच्चत्थिमेण वि) पश्चिम दिशामा पर ( उक्कोसए) धारेभा पधारे प्रभाशुपाणी ( अद्वारसमुहुत्ते दिवसे भवइ) शु. १८ २५२ मुतने द्विस थाय छ १ मने से अभाणे (जयाण) यार (पच्वत्थिमेग) पश्चिममा (उकोसए) पधारेभा पधारे प्रभावाणा ( अद्वारसमुहुत्ते दिवसे भवइ) १८ मार भुडूतना GिA थाय छ, त्यारे शु (जवुद्दीवे दीवे) 'भूदी नामना दीपनी (उत्तरे) उत्तर शामा (जाव दुवालसमुहुत्ता राई भवइ ?) भने दक्षिण दिशामा माछामा माछा
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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