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________________ भगवतो ટ 1 , इत्यादि । हे गौतम ! हन्त, सत्यम् ' जयाणं ' यदा खलु त्वदुक्तरीत्या 'जम्बूद्वीपे द्वीपे ' जात्र - दुवालसमुहुचा ? यावत् - द्वादशमुहूर्ता' राईभवइ ' रात्रिर्भ - वति यावत्करणात - द्वीपे दक्षिणार्धे उत्कृष्टोऽष्टादशमुहूर्ती दिवसो भवति, तदा उत्तरार्धेऽपि उत्कृष्टोऽष्टादशमुहूर्ती दिवसो भवति, यदा च उत्तरार्धे उत्कृष्टोऽष्टादशमुहूर्ती दिवसो भवति तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरपर्वतस्य पौरस्त्यपश्चिमे द्वादशमुहूर्तममाणा रात्रिर्भवति । है । इस तरह अट्ठारह मुहूर्त्त प्रमाणवाले दिवस में छत्तीस घटिकाएँ होती हैं और बारह मुहूर्त्त में चौतीस घटिकाएँ होती हैं। पूछने का अभिप्राय ऐसा है कि जब दक्षिणभाग में और उत्तरभाग में अठारह मुहूर्त्त का दिन होता है तब क्या पूर्व पश्चिम में बारहमुहूर्त्त की रात्रि होती है ? इस प्रश्न का समाधान करते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि - ( हता गोगमा ! जया णं) हे गौतम! जैसा तुमने पूछा है - वह वैसा ही है - जब जंबूद्वीप में दक्षिणार्ध और उत्तरार्ध में अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत की पूर्व पश्चिम दिशा में बारह मुह की रात्रि होती है । यहाँ जो (जाव दुवालस मुहुत्तों ) के साथ यावत् पद आया है उससे (ढी पे दक्षिणा, उत्कृष्टोऽष्टादशमुहूर्ती दिवसो भवति, तदा उत्तरार्धेऽपि उत्कृष्टोऽष्टादशमुहूर्त्ती दिवसो भवति, यदा च उत्तरा उत्कृष्टोऽष्टादशमुहूर्ती दिवसो भवति, तदा जंबूद्वीपे द्वीपे मन्दर पर्वतस्य पौरस्त्यपश्चिमे) इस पूर्वोक्त पाठ का संग्रह किया गया है । એક મુહૂત ખને છે. આ રીતે ૧૮ અઢાર મુર્હુત પ્રમાણવાળા દિવસમાં ૩૬ છત્રીસ ઘડીએ હાય છે, અને ૧૨ ખાર મુહૂતની ૨૪ ચાવીસ ઘડીએ થાય છે, (૧ ઘડી એટલે ૨૪ ચાવીસ મિનિટ એક મુહૂત એટલે ૨૮ અઠયાવીસ મિનિટ સમજવી ) પ્રશ્નકાર એ જાણવા માગે છે કે (જ્યારે દક્ષિણુ અને ઉત્તરભાગમાં ૧૮ અઢાર મુર્હુતના દિવસ હોય છે, ત્યારે શુ પૂર્વ અને પશ્ચિમ ભાગમાં ખાર મુર્હુતની રાત્રિ હાય છે? ) महावीर अलुते प्रश्ननुं मा प्रमाणे समाधान रे छे - ( हता गोयमा ! ) खा, गौतम ! मेवु' न मने छे - ( जया ण जाव दुवालसमुहुत्ता राई भवइ) न्यारे જમૃદ્વીપના દક્ષિણામાં ૧૮ અઢાર મુહૂર્તીના દિવસ થાય છે, ત્યારે જ બુદ્વીપમાં મંદર પર્વતની પૂર્વ અને પશ્ચિમ શિામાં ૧૨ બાર મુહૂતની રાત્રિ થાય છે गडी (जो दुवालसमुहुत्ता ) साथै ने नीयेना पूर्व उथित पाउने थड वामां मान्यो छे - ( द्वीपे दक्षिणाधे, उत्कृष्टो (जाव ) यह माव्यु छे, तेना द्वारा ष्टादशमुहूर्तो विसो भवति, तदा उत्तराधे पि उत्कृष्टोऽष्टादश मुहूर्ता दिवसो भवति यदा व उत्तरार्धे उत्कृष्टोऽष्टादशमुहूर्ता भवति, तदा जबूद्दीपे द्वीपे, मन्दरपर्वतस्य पौरस्त्यपस्चिमे ) इत्यादि पूर्वोश्त पाउना साथ थयो छे.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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