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________________ प्रमेयवन्द्रिका टीका श०५ ३० १ सू० २ रात्रिदिवस स्वरूपनिरूपणम् २३ 9 गौतम ! हन्त, सत्यम् ' जयाणं ' यदा खलु ' जम्बुद्दीवे दीवे ' जम्बूद्वीपे द्वीपे ' दाहिणड्रे' दक्षिणार्थे ' दिवसे दिवसः ' जाव - राईभवइ ' यावत्-रात्रिभवति, इति यावत्करणात् 'भवति, तदा उत्तरार्धेऽपि दिवसो भवति, यदा च उत्तराsपि दिवसो भवति, तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्स पर्वतस्य पौरस्त्यपश्चिमे ' इति संग्राह्यम् । रहता है फिर भी उसका प्रकाश मर्यादित है । अर्थात् उसका प्रकाश अमुक भागतक ही जाता है- आगे नहीं जाता है-इसलिये रात और दिवस का व्यवहार बन जाता है । जितनी मर्यादा तक जबतक सूर्यका प्रकाश रहता है- उतना भाग में तबतक दिवस का व्यवहार और प्रकाश वर्जित स्थान में रात्रि का व्यवहार होता है । इसी बात को क्षेत्र विभागपूर्वक इस सूत्र द्वारा प्रकट किया गया है, गौतम प्रभु से प्रश्न करते हुए पूछते हैं कि जब जम्बूद्वीप में दक्षिणार्ध में और उत्तरार्ध में दिवस होता है तब क्या पूर्व और पश्चिम भाग में रात्रि होती है क्या ? भगवान् इसका उत्तर देते हुए गौतम से कहते हैं कि ( हंता गोयमा ! हां गौतम ! (जयाणं ) जब (जंबुद्दीवे दीवे) जम्बूद्वीप नामके मध्य जंबूद्वीप में (दाहिणड्ढे वि) दक्षिणार्ध में भी ( दिवसे) दिवस होता है तथ ( जाव राई भवइ ) यावत् रात्रि होती है । यहां यावत्पद से ( भवति तदा उत्तरार्धेऽपि दिवसो भवति, यदा च उत्तरार्धेऽपि दिवसो भवति, तदा ( जम्बुद्वीपे द्वीपेमन्दरस्य पर्वतस्य पोरस्त्यपश्चिमे) इस पाठका संग्रह किया ચારે દિશામાં ગતિ કરતા રહે છે, છતાં પણ તેના પ્રકાશ મર્યાદિત છે-એટલે કે સૂર્ય ના પ્રકાશ અમુક હદ સુધીજ જાય છે—તે હદ કરતાં આગળ જતા નથી. તે કારણે રાત્રિ અને દિવસ થાયા કરે છે. જેટલી હદમાં જ્યાં સુધી સૂર્ય ના પ્રકાશ રહેછે, તેટલી હદમાં ત્યાંસુધી દિવસ રહે છે, અને પ્રકાશવિહીન સ્થાનમાં રાત્રિ હાય છે એજ વાતને ક્ષેત્ર વિભાગપૂર્વક આ સૂત્ર દ્વારા પ્રકટ કરવામાં આવેલ છે. ગૌતમસ્વામી મહાવીર પ્રભુને પૂછે છે કે (જ્યારે જમૃદ્વીપના દક્ષિણાધ અને ઉત્તરાધમાં દિવસ હૈાયછે, ત્યારે શુ પૂર્વ અને પશ્ચિમ ભાગમાં રાત્રિ હોય છે ?) या प्रश्नोन महावीर प्रभु मेवे उत्तर आये छे ( हंता गोयमा ! ) डा, गौतम । ( जयाण) न्यारे (जबुद्दीवे दोवे ) यूद्वीप नाभना मध्य द्वीपना (दाहिणड्ढे वि) क्षिणाध' भां " दिवसे " हिवस होय छे, त्यारे (जाव रई भबई) यावत् रात्री हाय छे. अही यावत् पथी (भवति तदा उत्तरार्धेऽपि ) ઇત્યાદિ પાઠના સગ્રહ થયા છે. ઉત્તરા માં પશુ દિવસ હાય છે, ત્યારે જમૂ
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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