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भगवतीले ततो बलदेवानां, वासुदेवानां च निरूपणम् , वासुदेवानां मातापितृगां प्रतिशत्रूणां च समवायमूत्रानुसारं निरूपणम् , विहारश्च ।
छद्मरथस्य सिद्धयभाववक्तव्यताप्रस्ताव: मूलम्-"छउमत्थेणं भंते ! मणूसे तीय-मणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं०? जहा पढसे सए चउत्थुद्देसे आलावगा तहा नेयम्वा, जाव- अलमत्थु चि वत्तव्वं सिया ॥ सू०१॥
छाया-छद्मस्थः खलु भदन्त ! मनुष्योऽतीतम् अनन्तम् , शाश्वतं समय केवलेन संयमेन० ? यथा प्रथमशतके चतुर्थों देशके आलापकास्तथा ज्ञातव्याः, यावत-अलमस्तु इति वक्तव्यं स्यात् ।। मू०१॥ में जान लेना चाहिये। कुलकरों की संख्या का कथन तीर्थंकरों के माता पिता और शिष्यों का निरूपण, चक्रवर्तियों की माताओं का तथा स्त्री रत्नों का प्रतिपादन, बाद में बलदेव, और वासुदेवों के माता पिताओं का तथा उनके शत्रुभूत प्रति नारायणों का निरूपण समवाय सूत्र और विहार। छद्मस्थ के सिद्धय भाव की वक्तव्यता का वर्णन
'छउमत्थेणं भंते' इत्यादि। सूत्रार्थ-(छउमत्थे णं भंते! अणूसे तीय-मणतं सासयं समय केवलेणं संजमेणं० ) हे भदन्त ! छमस्थ मनुष्य व्यतीत अनन्त शाश्वत समय में केवल संयम से सिद्ध हुआ है क्या ? (जहा पढमसए चउत्युइसे आलावगा तहा नेयव्या जाव अलमत्युत्ति वत्तव्वं सिया) हे गौतम जिसप्रकार से प्रथम शतक में चतुर्थ उद्देशक में आलापक कहे हैं, उसी
પ્રકાર સમજી લેવું. કુલકરની સંખ્યાનું કથન, તીર્થકરેના માતાપિતા અને શિષ્યોનું નિરૂપણ, ચક્રવતીઓની માતાઓ તથા રત્નનું કથન, બળદેવ અને વસુદેવના માતાપિતાનું તથા શત્રુભૂત પ્રતિનારાયણનું નિરૂપણ, સમવાય સૂત્ર અને વિહાર
છદ્મના સિદ્ધયભાવની વક્તવ્યતા– " छउमत्थेणं भंते !" त्या
सूत्रा--" छउमत्थे ण भते ! मणूसे तीय मणतं सासयं समय केवले ण संजमेण" 3 महन्त ! ७५२५ मनुष्य वीतमा मनत, शाश्वत समयमा शु संयमभावना प्रभावथा सिद्ध५४ पास्या छ ? " जहा पढमम्रए चउत्थु। इसे आलावगा तहा नेयव्या जाव अलमत्थुत्ति वत्तव्य सिया" गौतम ! AL