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________________ भगवतीसूर्य द्वीपे द्वीपे दक्षिणार्धेऽपि दिवसः, यावत्-रात्रिभवति, यदा खलु भदन्त ! जम्बू द्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पौरतस्त्ये दिवसो भवति तदा पश्चिमेऽपि दिवसोभ. वति, यदा खलु पश्चिमे दिवसो भवति तदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्थ उत्तर-दक्षिणे रात्रिर्भवति? हन्त, गौतम ! यदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरपौरस्त्ये जंबूद्वीप में सुमेरु पर्वत की उत्तरदिशा तरफ और पश्चिम दिशा तरफ रात्रि होती हैं ? (हंता, गोयमा जया णं जवुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वि दि. वसे जाव राई भवई) हां गौतम ! इसी तरह से होता है-जब जंबूद्वीप नामके द्वीप में दक्षिणार्ध में भी दिवस होता है तब यावत् रत्रि होती है। (जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं दिवसे भवइ) हे भदन्त ! जिस समय जंबूद्वीप नामके द्वीप में मंदर पर्वत की पूर्व दिशा तरफ दिवस होता है (तया णं पच्चत्थिमेण वि दिवसे भवह) तब पश्चिम दिशा तरफ भी दिवस होता है और (जयाणं पच्चत्थिमेणं दिवसे भवइ, तया णं जवुद्दीवे दीवे मंदरस्स पन्वयस्स उत्तरदाहिणेणं राई भवइ) जब पश्चिम दिशा तरफ दिवस होता है,तब जम्बूद्वीप में मंदर पर्वत की उत्तर दक्षिण दिशा तरफ रात्रि होती है ? क्या ? (हंता, गोयमा ! जया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरपुरस्थिमे णं दिवसे जाव राई भवई) हां, गौतम ! इसी तरह से होता है-तब यावत् रत्रि પર્વતની ઉત્તર દિશા તરફ અને પશ્ચિમ દિશા તરફ શું રાત્રિ હોય છે (हंता, गोयमा !-जयाणं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वि दिवसे जाव राई भवई ) , ગૌતમ! એવું જ બને છે જ્યારે જંબુદ્વીપ નામના દક્ષિણાર્ધમાં દિવસ હોય છે ત્યારે ઉત્તરાર્ધમાં પણ દિવસ હોય છે, (યાવત) અને ત્યારે સુમેરુ પર્વ तनी उत्तर भने पश्चिम दिशाम रात्रि डाय छे. (जयाण' भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं दिवसे भवइ) महन्त ! न्यारे मूद्वीपना भ२५तिनी शिम हिस काय छे, (तयाणं पचत्थिमेण वि दिवसे भवइ त्यारे पश्चिम दिशाम ५ हस डाय छ भने (जयाण पचत्थिमेण दिवसे भवइ, तयाण' जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणणं राई भवइ ?" જ્યારે પશ્ચિમ દિશામાં દિવસ હોય છે, ત્યારે જબૂદ્વીપના મંદર પર્વતની ઉત્તર क्षिण दिशाम शु रात्रि साय छ १ (हंता गोथमा ) , गीतम ! मे मन छ, “ जयाणं जंबुद्दीवे दीवे मैदरपुरत्यिमेणं दिवस जाव राई भवई "
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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