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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ २० १ सू० ३ रात्रिदिवसस्वरूपनिरूपण १३ भवइ, तयाणं उत्तरड्डे वि, जयाणं उत्तरड्डे तयाणं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिम-पच्चस्थिमेणं उक्कोसिया अटारसमुहुचा राई भवइ ? हंता, गोयमा! एवं चेव उच्चारेयव्वं, जाव-राई भवइ, जयाणं भंते ? जंबुद्दीवे दीवे मंदर स्स पव्वयस्स पुरस्थिमेणं जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तयाणं पञ्चत्थिमणं वि, जयाणं पञ्चत्थिमेणं वि, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं उकोसिया अहारसमुहुत्ता राई भवइ ? हता. गोयमा १. जाव राई भवइ ॥ सू० २॥ छाया-यदा खलु भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे दक्षिणार्धे दिवसो भवति तदा खलु उत्तरार्धेऽपि दिवसो भवति, यदा खलु उत्तरार्धेऽपि दिवसोभवति, तदा जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्य-पश्चिमे खलु रात्रिभवति ? इन्त, गौतम ! यदा जम्मू (जयाणं भंते !) इत्यादि। . सूत्रार्थ-(जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्डे दिवसे हवइ ) हे भदन्त ! जब जंबूद्वीप में दक्षिणार्ध में दिन होता है ( तयाणं उत्तरड़े वि दिवसे भवइ) तब उत्तरार्ध में भी दिवस होता है। और (जयाणं उत्तरड्डेवि दिवसे भवइ, तया णं जंबूद्दीवे दीवे मंदस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमे णं राई हवइ) जब उत्तरार्ध में भी दिवस होता है तष " जयाणं भंते !" त्या सूत्रा--(जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणढे दिवसेहवइ) m Mera ! न्यारे हीन क्षिामा हिवस खाय छ, ( तया णं उत्तरडूढे वि दिवसे भवइ) त्यारे उत्तराभा पर शुसि डाय छ ? मन ( जयाणं उत्तरढेऽवि दिवसे भवइ, तयाण' जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपञ्चस्थिमेणं राई हवइ ) ब्यारे उत्तराभा ५ हिवस खाय छ, त्यारे भूदीमा सुरु - -
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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