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________________ प्रमेन्द्रका टीका २०५ ४० ४ सू०६ नो संयतस्वरूपनिरूपणम् २६३ नो संपत देववक्तव्यता प्रस्तावः मूलम् -' भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नसंलइ, जाव - एवं वयासी - देवाणं भंते ! संजया ति वक्तव्वं सिया ? गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे, अब्भक्खाणमेयं देवाणं । देवाणं भंते ! असंजया ति वक्तव्वं सिया ? : णो इणट्ठे समट्टे, निठुरवयणमेयं । देवाणं भंते ! संजया संजया ति वतव्वं सिया ? गोयसा ! नो इणडे समट्ठे, असन्भूयमेयं देवाणं, से किं खाई णं भंते ! देवा इति वत्तव्वं सिया ? गोयमा ! देवाणं नोसंजया इ वन्तव्वंसिया ||६|| छाया - भदन्त । इति भगवान् गौतमः श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति यावत्-एवम्-अवादीत् - देवाः खल भदन्त ! संपता इति वक्तव्यं स्यात् ? गौतम ! नायमर्थः समर्थ अभ्याख्यानम् एतत् देवानाम् । देवाः खलु भदन्त ! नो संयत वक्तव्यता " भंते ! प्ति भगव इत्यादि । सूत्रार्थ - ( भंते! त्ति भगवं गोयसे समणं भगव महावीरं चंदइ नमंसइ) हे भदन्त | इस प्रकार से संबोधित करके भगवान् गौतमने श्रमण भगवान् महावीर को वंदना की उन्हें नमस्कार किया ! ( जाव एवं ) यावत् फिर उनसे इस प्रकार से पूछा- ( देवाणं भंते । संजयात्ति वक्तव्यं सिया ? ) हे भदन्त । देव संयत होते हैं क्या इस प्रकार से कहाजा सकता है ? ( गोयमा | णो इणडे समट्ठे ) हे गौतम यह ના સયત વક્તવ્યતા— “ भंते ! त्ति भगव” इत्यादि - सूत्रार्थ - ( भंते! त्ति भगव गोयमे समण भगवं महावीर वंदइ नमसइ ) " हे अहन्त !” शेषु' सौंभोधन पुरीने भगवान गौतमे श्रमायु भगवान भडा 66 वीरने वडा उरी अने नमस्कार तेभने मा प्रमाणे पूछयु - ( देवाण हे लहन्त ? हेवा संयत होय छे . ( जाव एवं वयासी) त्यार माह तेभो भ'ते ! संजया त्ति वत्तन्त्र सिया ? ) उही शाय भ३ १ ( गोयमा णी इण्डे म
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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