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भगवती वा उत्पादयेत्, अथ च नो चैव ' छविच्छेदं पुणकरेज्जा' छविच्छेदं शरीरच्छेद पुनः नो कुर्यात् कथमेतत् संभवेत् ? इत्याह-" एंमुहुमं चणं " इयत्सुक्ष्मं च खलु संहरणं च भवति देवानां तथाविधाचिन्त्यसामर्थात् इयत्सूक्ष्मं यथा स्यात्तमा 'साहरेज वा नीहरेज या' सहरेद् वा निहरेद् वा गर्भाशयाद् पीडनमन्तरैवगीं निष्कास्य अन्यगर्भाशये प्रवेशयति गर्भाशयात् वहिनिष्कासयतिवेत्याशयमु.३॥
मूलम्-" तेणं कालेणं, तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंते वासी अइमुत्ते णामं कुमारसमणे पगइ भदए, जाव-विणीए, तएणं से अइमुत्ते कुमारसमणे अ. प्रणया कयाइं महाबुटिकायंसि निवयमाणंसि कक्खपडिग्गह रयहरणमायाए बहिया संपठिए विहाराए, तएणं अइमुत्ते कुमारसमणे वाहयं वाहमाणं पासइ, पासित्ता मट्टियाए अथच-(नो चेव छविछेदं पुण करेज्जो) और न वह उस समय गर्भ के शरीर का छेदन ही करता है। यह बात संभवित कैसी हो सकती है तो इसके लिये (एप्सहुमं च णं साहरेज्ज वा नीहरेज्ज वा) इस पाठ द्वारा प्रकट किया गया है-इसमें कहा गया है कि-इतना सूक्ष्म संहरण और निर्हरण होता है कि जिसमे छविच्छेद करने की जरूरत ही नहीं होती है । क्यों कि देवों की इस प्रकार से करने की सामर्थ्य है वह उनकी सामर्थ्य अचिन्त्य होती है। इस तरह वह देव गर्भ को जितना सूक्ष्म से सूक्ष्म वह बन सके इतना सूक्ष्म उसे करके गर्भाशय से बाहर निकलता है और दूसरे गर्भाशय में उसे रख देता है । इस क्रिया के करने में देव द्वारा गर्भ को किसी भी प्रकार की चाधा थोड़ो बहुत भी नहीं होती है । सू०३ ॥ ५५ "नो चेव छविछेदं पुण करेग्जा" समये ते ना शरीरनुं छेदन પણ કરી નથી. તે પછી એ ગર્ભનું સંહરણ કેવી રીતે શક્ય બને છે, એ पात घट ४२वान भाट नीयन सूत्र मायुं छ- “ एसुहुमं च ण् साहरेज्ज वानीहरेज वा" मे सूक्ष्म ४२ मन नि२९ डाय छ , गमना શરીરનું છેદન કરવાની જરૂર જ રહેતી નથી કારણ કે એવું કરવાનું સામાણ્ય દેવામાં હોય છે જ તેમનું તે સામર્થ્ય અકલ્પનીય હોય છે. તે દેવ તે ગમે બની શકે તેટલે સૂક્ષમ બનાવીને ગર્ભાશયમાંથી બહાર કાઢે છે અને તેને બીજા ગર્ભાશયમાં મૂકી દે છેઆ ક્રિયા થાય ત્યારે ગર્ભને સહેજ પણ પીડા થતી નથી સાસુ