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_ 'भगवतीसरे विपयकत्वात् , 'निवुढे नाणे केवलिरस' नि निराणं पायिवत्वात शर्टज्ञानं केलिनो भवति 'निम्बुडे सणे के वलिरस' निवृत्त निष्ठां गतं क्षीणावरण क्षायिकत्वात् विशुद्धं दर्शनं भवति केवलिनः । अन्ते उपसंहरबाह-से तेणडेणं जाव-पासई' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन यावत्-पश्यति केवली । ।। सू०१॥
छद्मस्थकेवलिनो हासादिवक्तव्यताप्रस्तावः । मूलम्-" छउमत्थे चं भंते ! हस्सेज्ज वा, उस्सुयाएंज्ज वा ? हंता, गोयमा ! हसेज वा, उस्सुयाएज वा । जहा णं भंते ! छउमत्थे मणुस्से हसेज्ज,उस्सुयाएज्ज तहाणं केवली वि भगवान् ‘सर्वकाल में-भूत, भविष्यत् और वर्तमान काल में जीव अजीआदि समस्त पदार्थ सार्थ को जानते हैं और 'सव्वभावे पासइ केवली सर्वभावों को वे देखते हैं । क्यों कि 'अणते नाणे केवलिस्स' केवलि भगवान का ज्ञान अनन्त पदार्थों को विषय करने वाला होने के कारण अनन्त होता है । ' अणते देसणे केवलिस्स' तथा अनन्त अर्थों को देखने वाले होने के कारण उनका दर्शन भी अनन्त होता है निव्वुडे नाणे केलिस्स' ज्ञानावरणीय कर्म के सर्वथा होने से वह उनका ज्ञान आवरण से रहित कहा गया है । 'निव्वुडे दसणे केवलिस्स' दर्शनावरणीय कर्म के सर्वथा क्षय से जायमान होने के कारण उनका दर्शन भी अनन्त होता है। (से तेणटेणं जांच पासह ) इस कारण हे गौतम! मैंने ऐसा कहा है कि वे केवली यावत् देखते हैं । सू० १ ॥ जाणइ केवली) तथा darl anान अर्पण-भूत, भविष्य मने पतभान
भा-१, ०५ मा समस्त पानी छ भने ( सव्वभावे पासइ) तमा समस्त मावाने देणे छे. ४२ है (अणते गाणे केवलिस्म) aat भगवानतुं शान मन पनि त हावाथी अन डाय छ ( अणंते देणे देवलिरस ) मनात मान घट ४२ना३ डावाने भरणे तभन पणशन पशु मनात जाय छे. (निव्वुडे नाणे केवलिस्स) ज्ञाना१२९ीय भानो सर्वथा क्षय साथी तमनुते जान आवरण २डित डाय छे. (निव्वुडे दसणे केवलिस्स ) દર્શનાવરણીય કર્મને સર્વથા ક્ષય થવાથી તેમનું દર્શન પણ અનંત હોય છે' (से तेणद्वेण जाव पासइ) 8 गौतम! तेरो में मे थु छ है वही ભગવાન પાસેના શબ્દોને પણ જાણે દેખે છે અને દૂરના શબ્દોને પણ જાણે छ, हेमे छे. ॥ सू. १॥ - .