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प्रेमपन्द्रिका टी० श० ६ ७0 ४ सू० ३ लोकान्तिकदेवविमानादिनिक० १११६ नेषु । लोकान्तिकविमानेषु खलु भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञाता ? गौतम ! अष्ट सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता । लोकान्तिकविमानेभ्यो भदन्त ! कियकम् अवाधया लोकान्तः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! असंख्येयानि योजनसहस्राणि अबांधया लोकान्तः प्रज्ञप्तः, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू० ३ ॥
॥ षष्ठशतके पश्चमो शकः समाप्तः ।। ६-५॥ लोगतियविमाणेसु' यावत् हां गौतम ! अनेक वार अथवा अनन्तवार पहिले जीव उत्पन्न हो चुके हैं परन्तु यहां पर-लोकान्तिक विमानों में जीव 'अनेकवार अथवा अनन्त चार देवरूप से उत्पन्न नहीं हुए हैं। "लोगंतियविमाणेसु ण भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता' हे भदन्त । लोकान्तिक विमानों में कितनी स्थिति कही गई है ? 'गोयमा ! अढसागरोवमाई ठिई पण्णत्ता' हे गौतम! लोकान्तिक विमानों में आठ सागरोपम की स्थिति कही गई है। 'लोगंतिय विमाणेहितो णं भंते ! केवइयं अवाहाए लोगते पण्णत्ते' हे भदन्त ! लोकान्तिक विमानों से कितनी दूर लोकान्त कहा गया है ? 'गोयमा' हे गौतम ! लोकान्तिक विमानों से 'असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं अथाहाए लोगते पण्णत्ते' असंख्यात हजार योजन दूर लोकान्त कहा गया है। ' सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! जैसा आपने यह कहा है वह ऐसा ही है हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है । इति । .
खुतो-णो चेव ण देवत्ताए लोगतिय विमाणेसु) मा पxt-al " गौतम ! અનેકવાર અથવા અનંતવાર પહેલાં જીવે અહીં ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યાં છે, પરંતુ અહીં (કાતિક વિમાનમાં) જીવ અનેકવાર અથવા અંનતવાર દેવરૂપે Grपन या नथी, " त्यां सुधार्नु घडए] ४२. ' (लोगंतिय विमाणेसुण भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता ?) महन्त ! atन्ति विमानाना हवानी स्थिति अनी ही छ ? (गोयमा ! अद सागरोवमाइं ठिई पण्णता) गौतम! त्यो सरापमनी स्थिति ही छ ( लोगतिय विमाणेहितो ण भंते ! केवइयं अबाहाए लोगवे पण्णत्ते ? ) 3 Red! Astrar विमानाथी से इ२ (मतरे) alld sी छ ? • (गोयमा ! ) गौतम ! astras विमानाथी ( असंखेन्जाई जोयणसहस्साई अवाहाए लोगते पण्णत्ते) असण्यात १२ यात २ अन्त हो छे. ('सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) aad ! मापनी बात साथी छे.
ભદન્ત ! આપે કહા પ્રમાણે જ છે. એમ કહીને વંદણ નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી તેમને સ્થાને બેસી ગયા.