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________________ ०४ भगवती राजि नो व्यतिव्रजेत् । इयन्महालयाः खलु गौतम ! कृष्णराजयः प्रज्ञप्ताः, । सन्ति खलु भदन्त । कृष्णराजिषु गेहा इति वा, गेहापणा इति वा ? नायमर्थः समर्थ । सन्ति खल्ल भदन्त ! कृष्णराजिषुग्रामाइति वा, यावत्-सन्निवेशा इति वा? नायमर्थः समर्थः । अस्ति खल्लु भदन्त ! कृष्णराजिषु उदारा बलाहकाः संस्विधन्ति, समूवीईवएज्जा अत्थेगइ कण्हराई वीईवएज्जा, अत्थेगइयं कण्हराई णो वीईचएज्जा एमहालियाओ णं गोयमा कण्हराईओ पण्णत्ताओ) हे गौतम ! तीन चुटकी बजाने में जितना समय लगता है उतने समय में कोइ महर्द्धिक आदि विशेषणों वाला देव इस समस्त जंबूद्वीप का इक्कीस २१ बार चक्कर लगा आवे और वह इसी तरह से निरन्तर पन्द्रह दिन तक चलता रहे-तब कहीं संभव है कि वह देव किसी एक कृष्णराजि के पास तक पहुँच सके और किसी एक कृष्णराजि के पास तक नहीं पहुंच सके। हे गौतम ! इतनी विशाल ये कृष्णराजियां हैं। (अस्थि णं भंते! कण्हराईसु गेहाइ वा गेहावणाइ वा) हे-भदन्त ! कृष्णराजियों के भीतर गृह और गृहहह-गृह बाजार हैं क्या ? उत्तर(गोयमा) हे गौतम ! (णो इणढे सम४) यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् इन कृष्णराजियों में घर और घर बाजार बिलकुल नहीं है। (अस्थि णं भंते ! कण्हराईसु गामाह वा जाव संनिवेसाइ वा) हे भदन्त ! तो क्या :इन कृष्णराजियों में ग्राम यावत् सन्निवेश हैं ? (णो इणहे समढे) हे जबुहीवे दीवे जाव अद्धमासं वीईवएज्जा अत्थेगइअं कण्णराई वीईवएज्जा, अत्थेगइयं कण्हराई णो वीईवएज्जा-ए महालियाओ ण गोयमा ! कण्हराइओ पण्णत्ताओ) હે ગૌતમ! ત્રણ ચપટી વગાડતા જેટલો સમય લાગે છે એટલા સમયમાં કઈ મહદ્ધિક આદિ વિશેષણવાળો દેવ આ સમસ્ત જંબુદ્વીપની ૨૧ વાર પ્રદક્ષિણા કરવાને ધારે કે સમર્થ છે તે દેવ એટલી જ શીધ્રગતિથી નિરન્તર ૧૫ દિવસ ચાલ્યા કરે, તો તે કદાચ કઈ એક કૃણરાજીની પાસે પહોંચી શકે છે અને કેઇ એક કૃષ્ણરાજીની પાસે પણ પહોંચી શકતો નથી. હે ગૌતમ ! તે કૃષ્ણ शामरक्षी मा वि छ! ( अस्थि ण भंते ! कण्हराईसु गेहाइ वा गेहावणाइ वा ) 3 महन्त ! रिमामा धरा छ ? डाट छ १ (गोयमा!) है गौतम! (णो इणठे समठे) ते दुनियामा घर पर नथा भने હાટ પણ નથી. (अस्थि ण मंते ! कण्हराईसु गामाइ वा जाव संनियेसाइ वा?) महन्ता તે શું તેમાં ગામ આદિ સન્નિવેશ પર્યન્તનાં સ્થાને છે ખરાં? " (णो इणटूठे समठे ) 3 गौतम ! मे ४ ५ स्थान मा डाd
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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