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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०६ २०५ सू०१ तमकायस्वरूपनिरूपणम् १०४१ तमरकायः खलु भदन्त ! कुत्रः समुत्थितः, कुत्र संनिष्ठितः ? गौतम ! जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य बहिः तिर्यगसंख्येयान् द्वीप-समुद्रान् पतिव्रज्य अरुणवरस्य द्वीपस्य बाह्याद् वेदिकान्ताद अरुणोदकं समुद्रं द्वाचत्वारिंशद्योजनसहस्राणि अवगाह्य उपरितनाद् जलान्ताद् एकप्रदेशिकया श्रेण्या-अत्र खल्लु तमस्कायः समुत्थितः, सप्तकाय ऐसी शुभ होती है कि वह देशको-एक भाग को प्रकाशित करती है । और कितनीक पृथिवीकाय ऐसी होती है जो वह देश को-एक भाग को प्रकाशित नहीं करती है । इस कारण मैंने ऐसा कहा है कि तमस्काय पृथिवीरूप नहीं है अप-जलरूप है । (तमुक्काए णं भंते ) कहि समुहिए, कहिं संनिहिए ? ) हे भदन्त ! यह तमस्काय कहां से प्रारंभ होता है ? और कहां इसका अन्त होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जंबूदीवस्स बहिया तिरियमसंखेने दीवसमुद्दे वीईवडत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुदं बायालीसं जायण. सहस्लाणि ओगहिता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए एत्थणं तमुक्काए समुवीए) जंबूद्वीप के बाहिर तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्रों को उल्लंघन-पार करने के बाद अरुणवर द्वीप आता है। इस अरुणवर द्वीप को चारों ओर से अरुणोदय समुद्र घेरे हुए है। इस समुद्र की बाहिरी वेदिका के अन्त से लेकर अरुणोदय समुद्र में ४२ हजार योजन आगे जाने पर उपरितन जलान्त आता है। इस उपरि(दीप्यमान) डाय छेते हैशन (मे भागने ) शित ४२ छ, भने કેટલીક પૃથ્વીકાય એવી હોય છે કે જે ક્ષેત્રના એક ભાગને પણ પ્રકાશિત કરતી નથી. હે ગૌતમ તે કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે તમાકાય પૃથ્વીરૂપ નથી પણ જળરૂપ છે. (तमुक्काए ण' भते ! कहि समुट्रिए कहि स निदिए १) महन्त ! या તમસ્કાયને પ્રારંભ ક્યાંથી થાય છે અને કયાં તેની સમાપ્તિ થાય છે? (गोयमा!) गौतम (जंबूदीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीवममुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्ला भो वेइयंताओ अरुणोदयं समुदं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहिना उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढोए एत्थणं तमुक्काए समुट्ठीए) दीपनी मडार तिरछा असण्यात द्वी५ समुद्रोने पार કર્યા પછી અરુણુવર દ્વીપ આવે છે. આ અણવર દ્વીપને ઘેરીને ચારે તરફ અરુણદય સમુદ્ર રહેલો છે. તે સમુદ્રની બહારની વેદિકાના અન્તથી લઈને અરુણેદય સમુદ્રમાં બેતાલીસ હજાર યે જન આગળ જતાં ઉપરિતન જલાન્ત म १३१
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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