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________________ प्रमेयञ्चन्द्रिका टी० श० ५ उ०१ सू०४ लचणसमुद्रवकव्यता निरूपणम् ८३ गौतम ! यावत् - श्रमणायुष्मन् ! यथा लत्रणसमुद्रस्य वक्तव्यता तथा कालोदस्यापि भणितच्या नवरम् - कालोदस्य नाम भणितव्यम् । अभ्यन्तरपुष्करार्थे खलु भदन्त ! सूर्यै उदीची-प्राचीनम् उद्गत्य० ? यथैव धातकीखण्डस्य वक्तव्यता तथैव ओसप्पिणी जाव समणाउसो ) और जब उत्तरार्ध में भी प्रथम असर्पिणी काल होता है तब धातकी खंड नामके द्वीप में मंदरपर्वतों के पूर्वपर्वतों के पूर्वपश्चिम भाग में क्या अवसर्पिणी काल नहीं होता और उत्सर्पिणी काल भी नहीं होता है ? ( हंता, गोयमा | जाव समणाउसो) हां, गौतम इसी तरह से है, यावत् वहाँ अवसर्पिणी उत्सर्पिणीकाल नहीं है । (जहा लवण समुद्दस्स बत्तव्वया तहा कालोदस्स वि भाणियव्वा) जिस प्रकार से लवणसमुद्र की वक्तव्यता कही है उसी प्रकार से कालोंद समुद्र की भी वक्तव्यता कह लेनी चाहिये | (नवरं कालोदस्स नामं भाणियन्वं ) इस वक्तव्यता में कालोद ऐसा नाम आलपिक में जोड लेना चाहिये । (अभितरपुक्ख द्वेणं भंते ! सूरिया उदिचिपाई मुगच्छ ) हे भदन्त ! अभ्यन्तर पुष्करार्ध में सूर्य क्या ईशानदिशा से उदित होकर आग्नेयदिशा तरफ जाते हैं ? ( जहेव धाइयसंडस वक्तव्वया तव अभितरपुक्खरद्धस्स वि भाणिव्वा ) हे गौतम ! जिस प्रकार से धातकीखंड की वक्तव्यता प्रतिपादित की गई है उसी पव्वयाणं पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं नत्थि ओसप्पिणी जाव समणाउसो ) भने જ્યારે ઉત્તરા માં પણ પ્રથમ અવસર્પિણી કાળ હાય છે, ત્યારે ધાતકીખંડ દ્વીપના માર પતાની પૂત્ર અને પશ્ચિમમાં શુ અવસર્પિણી કાળ હોતા નથી भने शु उत्सर्पिशुआिण पशु होतो नथी ? ( इता, गोयमा ! जात्र समणाउसो ) डा, गौतम वुमने छे, मडी (मवसर्पिणी उत्सर्पिशुीक्षण होता नथी, ) ત્યાં સુધીનું પ્રશ્નસૂત્રનું કથન ગ્રહણુ કરવુ જોઈએ. ( जहा लवणसमुहस्स वक्तव्वया तहा कालो दस्स वि भाणियव्वा ) ? प्रमाणे લવણસમુદ્રની વક્તવ્યો આપી છે એવી જ કાલેાધિની પણ વક્તવ્યતા सभवी. (नवर कालोदस्स नाम' भाणियन्त्र' ) अडविधिना भासायअमां सवशुसभुद्रनी भ्यामे असोदृधि शब्दो प्रयोग अश्वो लेये. ( अग्भितरपुक्खरद्धेनं भंते! सूरिया उदीचिपाईणमुवगच्छ ) हे लहन्त । शुं मल्यन्तर युરાષ્ટ્રમાં સૂર્યોદય ઇશાનદિશામાં ઉદય પામીને અગ્નિદિશા તરફ જાય છે? ( जहेब धाइयसंडस्स वत्तव्या तदेव अभितरपुरक्खरद्धस्स वि भाणियव्वा ) હું ગૌતમ ! ધાતકીખ'ની જે પ્રકારની વક્તવ્યતાનું આગળ પ્રતિપાદન કરાયું.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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