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मगमतीचे रसी नयरी' एपा खलु वाराणसी नगरी, 'एम खलु रायगिहे नयरे' एतत् खलु राजगृहं नगरम्, 'एस खलु अंतरा एगेम जणवयवग्गे' एष खलु अन्तरा मध्ये एको महान् जनपदवर्गः 'णो खलु एस मह' नो खलु पपा मम 'पीरियलदी' वीर्यलन्धिः, 'वेउब्बियलद्धी' क्रियलन्धिः 'विभंगणाणलदी' विभंगवानलब्धिः 'इड्ढी' ऋद्धिः 'जुत्ती' पुतिः, 'जसे' यशः, 'बले' बलम् 'वीरिए' वीर्यम्, 'पुरिसकारपरकामे पुरुषकारपराक्रमः पुरुषार्थमतापः 'लद्धे, पत्ते, अभिसमण्णागए' लब्धः, प्राप्तः, अभिसमन्वागतः, उपसंहरति-'से से दसणे' इत्यादि । तत् तस्य अनगारस्य मायिनः दर्शने 'विश्चासे व्यत्यासो विपर्यासो भवति, 'से तेण?ण तत् तेनार्थेन विपरीतदानेन 'जाव-पासई' यावत्-पश्यति, यावत्करणात् 'नो तधाभाचं जानाति, पश्यति, अपितु अन्यथा भाव जानाति' इति संग्राह्यम् ॥ सू० १ ॥ चाणारसी नगरी' यह वाणारसी नगरी हैं, एस खलु रायगिहे नयरे' यह राजगृह नगर है, 'एस ग्वल अंतरा एगे मई जणवयवग्गे' इन दोनोंके बीचमें यह एक विशाल जनपद समूह है। 'णो खल एस मह वीरियलद्वी' सो यह मेरी वीर्यलब्धि नहीं है, 'वेउब्बियलद्धी' वैक्रिय लब्धि नहीं है 'विभंगणाणलद्धी' 'विभंगज्ञानलब्धि नहीं है। लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए' मेरे द्वारालब्ध, प्राप्त एवं अभिसमन्वागत 'इड्ढी' ऋद्धि 'जुत्तो' धुति, 'जसे' यश, 'चले' यल, 'पीरिए' वीर्य और 'पुरिसफारपरकमे' पुरुपकार पराक्रम मेरे नहीं है । इस तरह से से दसणे' उस मायी अनगार के दर्शन में 'विवचासे भवह विपर्यास होता है। 'से तेणद्वेणं जाव पासइ- इस प्रकार वह मायी मिथ्यादृष्टि अनगार नगरी छ, 'एस खल रायगिहे नयरे' मा २२०23 नग छ, 'एस खल अंतरा एगे महं जणवयवग्गे' ते मन्ननी पश्य मा मे विशार समूह . 'णो खलु एस महं वीरियलद्धी' तो मा भारी वाय नथा भारी पीययन प्रमाथी मा मन्यु नथी, 'वेउन्वियलद्धी मा भारी
यसनी , 'विभंगणाणलद्धी' मा भारी विज्ञानमनिया. 'लद्धे पने, अभिसमण्णागए' भारा 41॥ध, प्राप्त मन मसिसमन्वागत डी. *द्धि, 'जत्ती, धुति, जिसे ,, 'वले' - ,'चीरिये' वाय मन "परिसकारपरको भरपा ५२ भांश नथी. मा शत 'से से दसणे, भायी समारना निम (नेपानी तभi) "विवचासे भवई' विपर्यासलाव-विपरीत मावी गय छे. "से तेणटेणं जाव पासइ... गातात. १२0 में सोते भायी