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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३उ.मू.१ मिथ्यादृष्टेरनगारस्य विकुर्वणानिरूपणम् ७१७ हंता, जाणइ पासइ, से भंते ! किं तहा भावं जाणइ, पासइ !
अन्नहा भावं जाणइ पासइ ! गोयमा ! णो तहाभावं जाणा, पासइ, अण्णहा भावं जाणइ पासइ, से केण?णं भंते! एवं बुच्चइ नो तहा भावं जाणइ, पासइ, अन्नहाभावं जाणइ, पासइ ! गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ एवं खल्ल अहं रायगिहे नयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूबाइं जाणामि, पासामि, सेसे दसणे विवञ्चासे भवइ, से तेणटेणं जाव-पासइ, अणगारेणं भंते ! भावियप्पा माई, मिच्छदिट्टी जाव-रायगिहे नयरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नयरीए रूबाइं जाणइ, पासइ ! हंता, जाणइ पासइ, तं चेव जाव-तस्स णं एवं हवइ एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए समोहए, समोहणित्ता रायगिहे नयरे रूवाइं जाणामि, पासामि, सेसेदंसणे विवञ्चासे भवइ, से तेणटेणं जाव-अन्नहा भावं जाणइ, पासइ; अणगारेणं भंते ! भावियप्पा माई, मिच्छदिट्टी वीरियलद्धीए; वेउविय लद्धीए, विभंगणाण लडीए वाणारसी नयरिं, रायगिहं च नयरं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं समोहए, समोहणित्ता वाणारसी नयरिं, रायगिहं च नयरं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं जाणइ, पासइ ! हंता, जाणइ, पासइ ! से भंते ! किं तहाभावं जाणइ पासइ अण्णहाभावं जाणइ पासइ ! गोयमा ! णो तहाभावं जाणइ, पासई, अन्नहाभावं जाणइ पासइ से केणटेणं जाव-पासइ ! गोयमा ! तस्स खलु एवं