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भगवती तिकटु ममं बंदइ, नमसइ, उत्तरपुरस्थिमयं दिसीभायं अब.
कमइ, वामेणं पादेणं तिक्खुत्तो भूमि दलेइ, चमरं असुरिंदै __ असुररायं एवं वयासी-मुक्कोसि णं भो! चमरा ! असुरिंदा!
असुरराया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स पभावेणे-नहिते इयाणि ममाओ भयं अस्थि तिकट्ठ जामेव दिसं पाउन्मए तामेव दिसं पडिगए सू०९॥
छाया-ततस्तस्य शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अयमेतद्रूप आध्यत्मिका, यावत्-समुदपधत-नो खलु प्रभुश्चमरोऽसुरेन्द्रः, अमरराजः नो खलु समर्थः चमरोऽसुरेन्द्रः, असुरराजः, नो खलु विषयः चमरस्य अमरेन्द्रस्य असुरराजस्य आत्मनो निश्रया ऊर्ध्वम् उत्पत्य यावत्-सौधर्मः कल्पः, नान्यत्र अर्हन्तं वा, 'तए णं तस्स' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-(तए णं) इसके बाद (तस्स देविंदस्स देवरण्णो) उस देवेन्द्र देवराज शक्र के (इमेयारूवे अज्झथिए) इस प्रकार का आध्यात्मिक (जाव समुपज्झित्था) यावत संकल्प उत्पन्न हुआ (नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया) असुरेन्द्र असुरराज चमर शक्तिवाला नहीं है । (नो खलु समत्थे चमरे असुरिंदे असुरराया) असुरेन्द्र असुरराज चमर समर्थ नहीं है (नो खलु विसए चमरस्स असुरिदस्स असुररण्णो अपणो निस्साए उट्ट उप्पइत्ता जाव सोहम्मो कप्पो) तथा असुरेन्द्र असुरराज चमरका यह विषय भी नहीं है कि वह 'तएणं तस्स' त्या
सत्रार्थ-(तएणं) त्या२ माई-400 छ।34। पछी (तस्स देविंदस्स देवरणो) देवेन्द्र देवश१ २४ने ( इमेयारूवे अज्झथिए) मा प्रसार माध्यामि (जार समपत्थिज्झा) माहि विशेषपाणी ४६५ पन थये। ३ (नो खलु पभू चमरे अमरिंदे असुरराया) मसुरेन्द्र असु२२१०१, माटो गधा शशि थी, (नो खलु समत्थे चमरे अमुरिंदे असुरराया) मसुरेन्द्र असु२२११ सभ२ आzal मधा समर्थ नथी. (नो खलु विसए चमरस्स असुरिंदरस असुररण्णो अपणो निस्साए उट्ट उप्पइत्ता जाव सोहम्मो कप्पो) मसुरेन्द्र मसु२२।०१ यभर पातानी