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भगवतीपत्रे
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भागप्रदान
विभागः 'कयको य-मंगल- पायच्छिते कृतकीतुकमङ्गलमाश्रितः कृतमषी तिलकादिदध्यक्षतादिरूप दुःस्वप्नविघातक मातः कृत्यः 'सुद्धपावेसाई' श्रद्ध मावेश्यानि शुद्धानि प्रवेश्यानि सभामवेशयोग्यानि, 'मंगलाई' माहल्यानिमङ्गलसूचकानि 'त्या' वस्त्राणि ' पवरपरिहिए' मवरपरिहित: सम्यक्रतया परिधाय 'अप्पमग्याभरणालंकियसरीरे' अल्पमहाभरणान्तरीरः अल्प मारवहुमूल्य कही र कालङ्कारशोभितशरीरः, 'भोगणवेला ' भोजनवेलायाम् भोषणमंडसि' भोजनमण्डपे ' सुहास गवरागए शुमासनवरगतः शुभामें उसने 4 1 व्हाए नान किया 'कग्रबलिकम्मे ' काक आदि पक्षियों को अन्न आदिका किया 'कको मंगल पायच्छित्ते' दुःस्वप्न आदिके दोपको दूर करने के निमित्त मपीका तिलक, किया, दध्यक्षत आदिका उपयोग किया इस तरह ये सब प्रातःकृत्य करके उसने 'सुद्धपावेसाई' सभामें प्रवेश के योग्य-सभा में जाते समय पहिरने के योग्य शुद्ध-साफ 'मंगलाई ' मंगलसूचक 'त्या' वस्त्रोंको 'पवरपरिहिए' अच्छी तरहसे धारण किया पहिरा, कपडौको पहिर करके फिर उसने 'अप्पभारमहग्धाभरणालंकियसरीरे' ऐसे हीरक आदि के अलंकारों को यथास्थान पहिरा कि जो वजन में तो कम थे और कीमत में विशिष्ट मूल्यवाले थे। इस प्रकार से सज धज करके फिर वह तामली ' भोयणवेलाए' भो जनके समय 'भोषणमंडवंसि' भोजनमंडपमें आया वहां वह 'सुहा सणचरगए' एक सुखासन पर बैठ गया 'तरणं' बादमें उसने वहां थारे अठारनां माहारा तैयार भावाने "हाए" तेभ] स्नान यु “कयवलिकम्मे " કાગડા આદિ પક્ષીઓને ચણને માટે દાણા નાખ્યા. (s कयकीय मंगलपायच्छित्ते " દુઃસ્વપ્ન આદિના દોષના નિવારણુંને માટે મનું તિલક કર્યું, ભાત દહીં આદિના ઉપયોગ ठय. या रीते मघां प्रातर्भों पतावाने "मुद्धपावेसाई” तेभले समाभां ती वसते थडेरवा योग्य, शुद्ध "मंगलाई वत्थाई" भगणसूय वसो "पत्ररपरिहिए" बढ़ी સારી રીતે પહેર્યાં. કપડાં ધારણુ કરીને તેમણે << अपभारमहग्घाभरणालं कियसरीरे" वनमां इस भय अतिशय भूल्यवान मेर्पा द्वारा भोती महिना आभूष शरीरे धारय र्या भा प्रभा] सन्नवर हरीने ते तामसी " भोयणवेलाए भोयण मंडव सि" लोटन सेवानो समय थयो त्यारे सोनम उभा मान्यो त्यांते मे "सुहासणवरगए" सुभासन पर मेसी गयो “तं" त्यार माह त्यां भावेसा तेभना
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