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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. १ इशानेन्द्रस्य दिव्यदेवऋद्धिनिरूपणम् चित्रचञ्चलकुण्डल विलिख्यमा नगण्डः यावत् - दशदिशाः उद्घोतयन् प्रभासयन् ईशाने कल्पे ईशानावतंस के विमाने, यथैव राजमनीये यावत् - दिव्यां देवद्विम्, यावत्-यामेव दिशं मादुर्भूतः, तामेव दिशं प्रतिगतः, 'भगवन् ! इति, भगवान गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति, एवम्-अवादीत्जो धारण किये हुए था (आलईयमालमउडे) मालाओं से युक्त मुकुट जिसके मस्तक पर शोभित हो रहा था - ( नव हेमचारुचित्तचंचल कुंडलविलिहिज्ज माणगंडे) दोनों कपोल मंडल जिसके नवीन सुवर्णसे रचित सुन्दर विचित्र चंचलकुडलोंकी रगड़से चमक रहे थे ( जाव दस दिसाओ उज्जीवेमाणे) यावत् दश दिशाओंको प्रकाशित करता हुआ (पभासे माणे ) उन्हें अपनी प्रभासे चमकीली बनाता हुआ ईशानकल्पमें (ईसाणचडिसए चिमाणे ) ईशानावतंसक विमान में (जहेब रायसेइज्जे) राजप्रसेनीय उपांगमें कहे अनुसार (जाव दिव्वं देविडि) यावत् दिव्य देवर्द्धिको भोगता (जाव जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए) यावत जिस दिशासे प्रकट हुआ था उसी दिशा में पीछे चला गया (भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदह नम॑सइ एवं वयासी) हे भदंत ! इस प्रकार से प्रभुको संयोषित करके भगवान गौतमने उन श्रमण भगवान महावीर को वंदना की, नमस्कार किया । वंदना नमस्कार करके फिर उन्हों ने प्रभु से इस નિર્માળ વસ્ત્રો ધારણ કર્યાં Aai ( आलयमालमउडे ) भागाथा युक्त મુગઢ જેના માથા ५२ शोलतो तो ( नवहेम चारुचितचंचळ कुंडलविलि हिज्जमाणगंडे) नूतन सुवथा निर्मित सुंदर, विभित्र भने संग मुंडजोना असन नेना जने गास यजडी रह्या हता, ( जात्र दसदिसाओ उज्जीवेमाणे) हसे हिशाओने
प्राशित उरतो तो (पभासे माणे) पोतानी प्रभाथी हसे दिशाभने ? हेही ध्य भान उरतो इतो, (ईसाणे कप्पे ) ? ईशान देवसेना (ईसाणवर्डिसए त्रिमाणे) थानावत स विमानमा ( जहेव रायप्प सेणहज्जे) रामप्रसेनीय उद्योगमा वर्षाव्या प्रभाशे (जाव दिव्वं देविडिंट) द्विव्य देवऋद्धिना उपलोग उरतो इतो, ते ईशानेन्द्र (जान जामेव दिर्सि पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए) ने हिशाभांथी प्रष्ट थये। हतो ते दिशाभां मदृश्य था गयो (भंते! तिभगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ एवं वयासी) त्यारे से लहन्त ! मे समोवन अरीने भगवान गौतमे શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણા કરી નમસ્કાર કર્યાં. પછી તેમણે તેમને આ પ્રમાણે