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________________ ८४६ इत्यर्थः अत एव 'पहीणसामिभार वामीण स्वामिकानि, नामर्दशन इत्पर्यः, 'पहीण सेउभार वा, प्रीणसेचकानि इति वा, पीमा सम्पी भूता सनया दन्यनिक्षेप्तारो पां सानि, 'परीण मग्गाणि बा, मीण मार्गाणि इति बा, 'पहीणगोनागारा इवा' महीणगोप्रागाराणि इति का महीणम् अल्पीभूतमनुप्यगोगागार तत्स्वामि गोया येमा तानि, 'उसम सामियाइवा' उत्सम ग्यामिफानि इति पा, आधिपत्यसत्ता रहितमभूमि, (उच्चण्णसेउमाया उत्सम सेतुसशनि इति वा, नाममात्रावशिष्टसेतुकानि 'उनण्णगोचागाराड या' उत्सनगोशगाराणि इति वा, नष्ट गोपनि इत्यर्थः, 'सिंघाडग-तिग-चउप-चघर-घउम्मुहमहापह-पहेसुगा' भृनाटकभिप-चतुष्प-चस्वर-चतुर्मुख-महापय-पपेपुवा वा श्रृङ्गाटके श्रृगाटक फलाकार जीर्णशीर्ण अवस्थामें हुई ऐमी घर विभूति कि 'पहीणसामियाइ' जिसके गादनेवाले स्वामीतक नष्टतक हो चुके हैं या मिलते नहीं है पहीणसेउयाइ चा, अथवा जिसकी वृद्धि करने वाले भी अब कोई नहीं रहे हैं, 'पहीणमग्गाणि घा, प्राप्ति करने के मार्ग मी जिमके नष्ट होचुके हैं 'परिण गोतागाराइ घा' अथवा जिनके स्वामियों के गोत्र, के घर अल्प रह गये हैं, 'उच्छण्णमामियाइ वा, अथवा जिसके स्वामी है भी परन्तु उनी उस पर कोड सत्ता नहीं रही है, 'उच्छपणसेउयार पा' सत्ता होने पर भी जिसकी संभाल करनेवाला कोई नहीं है नाम मात्र ही जिसकी सभाल परनेषाले अवशिष्ट हैं, उच्छण्णगोसागाराइ घा' जिसके स्वामिय, के गोत्रो के घर पिलकुल ही नष्ट हो चुके हैं। जो 'सिंघाडग-तिग-पठम-बाबर घसम्मुह-महापटपहेसु घा, सिंघारे के आकार से मार्गम, त्रिक Rav थामा २२बी विमति ०५fu] 8 परीणसामियाना भलित भरी ५२पार्या छ, 'पहीणसेउयाइ पा' यानी वृद्धि २३ ५९10 नयी 'पीणगोचागाराइ पा' या ना भाबिना HE अभाभी ci छ, 'पहिणमग्गाणि वा' या २२ मा ४२वाना भाना ५९ नाश पाय उच्छण्णसामियाइ बा' या ना स्वाभानु Maa मित ना ५२ तेना स्वाभानी s चा २०ी नक्षी, 'अच्छण सेठयाउमा જેની સભાછી રાખનાર કે ઇ જ નથી - અથવા જેની ભાળ રાખનાર और नामनात मा पास छ ' उरमण गोचागारा पा' साभाविना ५२ are गट २४ गया ७, २ 'सिंगारग तिम' चक्क. चचर, चउम्गामापा-पहेस वा' यासना मनात
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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