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प्रमेयचन्द्रिका टी श ३० ७८ ३ यमनामकलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ८१३ इति वा, 'सपाहमारी इ बा' सपामारी इति मा, 'सण्णिवेसमारी इ वा' सन्निवेशमारी इति वा, तत्फलान्याह-'पाणक्खया' इत्यादि । 'पाणक्खया' माणक्षया 'जणक्खया' जनक्षया 'धणक्खया' धनक्षया• 'कुलक्खया' कुलक्षया., 'वसणन्भूया' व्यसनभूता' 'अणारिया' अनार्या अधमा उत्पाता. 'जे यावि
यते' ये चाप्यन्ये 'तहप्पगारा' तपामकारा तत्सदृशा दुखदायिनो वर्तन्ते, __ 'ण ते' न ते 'सधास्स देविंदस्स देवरण्णो' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'जम सस महारण्यो' यमस्य महाराजस्य 'अण्णाया' अशाता सन्ति, -न केवल ते यमस्यैव नाज्ञाता अपितु यमपरिनाराणामपि ते नाशाता इत्याह-'तेसि वा जम मरकी का होना, 'सपाहमारी वा' सपाहमें मरकीका होना, 'सनिवेसमारोईवा सनिवेशमें ये सप उपद्रव-उत्पात हैं और ये सय उपद्रव यमलोकपालकी जानकारीमें होते हैं । इनका फल यह होता है कि-'पाणक्खया' इनसे प्राणोंका क्षय हो जाता है, 'जणक्खया' मनुष्योंका विनाश होता है, 'धणपखया' धनका क्षय होता है, 'कुलक्खया' कुलके कुल नष्ट हो जाते हैं, 'वसणम्भूया' ये सय उपद्रव दुखदायी अधमाति अधम उपद्रघ है-इसीलिये 'अणारिया' पापरूप हैं। तथा 'जे यावि अन्ने, सु ग्वदायी जो और भी दूसरे 'तहप्पगारा' इसी प्रकारके उपद्रव है 'ण ते मकस्म देविंदस्स देवरण्णो जमस्स महा रणो अण्णाया, ये सब देवेन्द्र देवराज शक्के लोकपाल यममहाराज के ज्ञानसे यहिभूस नहीं है, अर्थात् उसके द्वारा ज्ञात है, इन सय उपद्रवोंका ज्ञाता केवल यम ही है ऐसी यात नहीं है किन्तु यम के मानमा १२ वी, 'सपाहमारीह वा सवार भ२ वी. 'सनियेस मारी वा स निवेशमा म मावि पद्रवोनु तु मा ५वो ala ચમ મહારાજની જાણ બહાર થતા નથી. હવે સરકાર ઉપરના ઉપદ્રવનું શું पण भाव छ त मताछे-पाणकग्वया' परत पद्रवोधी मने जवान। [नन।] नाश या छे, 'अणक्खया' मनुष्योनो क्षय यायले 'घणक्खया' धनना क्षय याय छ 'फुलक्खया' भने पुणन सय ५५ छ, 'वसणन्मूया' मा पदको महायी मने अपभमा अम हाय तथा 'अणारिया' ते पा५ ३५ छ तया जे यावि भन्ने सहप्पगारा' ना बाल पक्ष Frut Gpal आप छ त 'ण से सक्फस्स देविदस्स देवरण्णो जमस्स महारपणो अण्णाया' દેવેન્દ્ર દેવરાજ શકના બીજા લોકપાલ ચમ મહારાજથી અજ્ઞાત હોતા નથી—એ બધા ઉપદ્રવે તેમના આધિપત ની જ થતી હોય છે અમદેવ તે ઉત્પાતથી અજ્ઞાત નથી