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मण्डलविशेप, एव 'सुपरिवेसाइया' मरपरिवेपाः इति वा, परिवाना सम्मून्छिता रवीन्द्रो किरणा पवनेन मण्डलीभूता', 'नानापनी तपसमा व्योन्नि परिवेपाः' इति शेयम् । 'पडिचदा इवा' प्रतिबन्द्राः रितीक्षमा इति चा, 'पडिसूरावा' प्रतिसर्या द्वितीयमर्या इति पा,
उदयात् प्रभृति दिनमहरेक यारत् तनुपन मूर्यसमीपे या भवति, महा सूर्यकिरणवशात् तत्र द्वितीय पुर्य इव लक्ष्यते स प्रतिमूर्य उच्यते, समस्त समयेऽपि सम्मवति । प्रति चन्द्रविषयेऽपि एवमेव लक्षण श्रेयम्, 'इमपास' इन्द्रधनुः इति घा, 'उदगमच्छ-कवितसिपममोह-पाईणनाया दमा' उरकमहम'चदपरिवेसाइ वा घरमा के चारों तरफ गोलाकार मणलविशेषका होना, 'सूर परिवेमाइ चा' सूर्यके चारों और गोलाकर मण्डलविशेष का होना, (परिषेपका-लक्षण-सूर्य और चन्द्रमाकी किरणे एकत्र होकर अप पवन से मण्डलीभूत हो जाती है और उनमें अनेक वर्ण एघ आकार दिखलाई देने लगते है इसका नाम परिवेष है) पडिचदाइ घा' बितीयपद्रका होना, 'पहिमराह मा' दूसरे सूर्यका होमा सूर्यका अप उदय हो जाता है तप एक पहर दिन चल्ने तक पतता घादल सूर्यके समीप जय आजाता है-तप सूर्य की किरणों पशसे पहा पर दूसरा सूर्य जैसा प्रतिभासित होने एगता है इसीका माम प्रतिसूर्य है-इसी तरहसे पर्य जब अस्त होता है तब भी ऐसा ही प्रतिभास होने लगता है। प्रतिचन्द्रके विषयमें भी ऐसा ही लक्षण जानना चाहिये । 'इदधणूड पा' इन्द्रधनुषका होना, "उदगमा सूय 69 d 'पदपरिवेसार पा' सन्मानी स्वारे तर वर में राई 'सपरिवेसाह पा' सूर्यनारे २६ २ भ ४२ (१' અને ચકમના કિરણ સમ્મચ્છિત થઈને જ્યારે પવનથી તેમને મઠળ રચાય છે અને તેમના અનેક વર્ષ અને આકાર દેખાવા લાગે છે ત્યારે તેને ચન્દ્રપરિવેષ કે સૂર્ય परिव ३) 'परिषदाइ या तिन्द्र य ा, 'परिसराा पा' પ્રતિસય ઉદય થવો. (સૂર્ય ઉદય થયા પછી એક પહા૨ દિવસ છે ત્યા સુધી એક પાતળ વાદળ સૂર્યની સમીપે ભાવી જાય ત્યારે સૂર્યના કિરને ધ ત્યાં આ સર, તમે ય મને ભાસ થાય છે એને પ્રતિસ્ય કહે છે સૂર્યાસ્ત વખતે પણ એ જ પ્રતિભાસ થાય છે પ્રતિચનના વિષયમાં પણ પ્રતિસૂર્ય મા જ सम) 'दपणापा' भए पनुष २था, 'सदगमच्य-कपिइसिय मोरपाईन