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प्रमेयचन्द्रिका टीका श ३ ७ १ शक्रस्य सोमादिलोकपालस्वरूपनिरूपणम् ७८१ ते तदभक्तिकाः सोमदेवभक्तिपरायणा इत्यर्थः 'तप्पक्खिया' तस्पाक्षिका सोमपाक्षिकाः सोमस्य प्रयोजनेषु सहायभूताः 'तन्भारिया' तद्भार्याः तेन म योग्या' तस्य भार्याश्व भार्या अस्यन्तवश्यत्वात् तद्भार्याः सोमलोकपाल पोपणीया इत्यर्थ' 'सक्क्स्स देविंदस्स देवरष्णो' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'सोमस्स महारण्णो' सोमस्य महाराजस्य 'आणा उववाय- वयण- निद्देशे आज्ञाउपपात वचन - निद्दशे 'चिट्ठति' तिष्ठन्ति ॥ सू० १ ॥
मूलम् -'जबूदीवे दीवे मदरस्त पवयस्स दाहिणेण जाइ इमाइ समुपज्जति, त जहा - गहदडा इ वा, गहमुसला इवा, गहगज्जिआइ वा, गहजुहा इ वा, गहसिंघाडगा इ वा, गहावसवा इवा, अव्मा इवा, अव्भरुक्खा इ वा, सझाइवा, गधवनगरा इ वा, उक्कापाया इवा, दिसिदाहा इ वा, गजिआ इ त्रा, विजया इ वा, पसु बुट्टी हवा, जूवे इ वा, जक्खालित्तए इ वा, धूमिया इ वा, महिया इवा, रयुग्घापत्ति वा, चदोवरागा इ वा, सूरोवरागा इवा, चंदपरिवेसा इवा, सुरपरिवेसा इ वा, पडिचदा इ वा, पडिसूरा इ वा,
पहुमान करनेवाले देव हे 'सत्पविया' सोमके पक्षवाले-सोमके कार्य में सहायभूत देव हैं, 'सन्भारिया' तथा सामकी भार्यां जैसे जो देव हैं अर्थात् सोमकी रानीकी तरह सर्वप्रकार से सोमके ही आधीन रहनेवाले जो देष है 'ते सव्वे' वे सब 'सकस्स देविंदस्स देवरण्णो' देवेन्द्र देवराज के 'सोमस्समहारण्णो आणा उषवायययणनिसे चिट्ठति सोममहाराजकी आज्ञा उपपात, वचन एव निर्देशमें रहते है ॥ ० ॥
सोभने बहु भान भापनारा देवो है 'तप्पक्खिया' सोभना पक्ष होनारा-सोमना अभी सहाय थनाश ने देवा छे, 'सन्मारिया' तथा सोभनी भार्या समान देवोछे भेटते हे शनी प्रेम सहा तेने अधीन रहनाश ने देवो 'ते सब्वे' ते सौ सकस्स देविंदस्स देवरण्णो सोमस्स महारष्णो देवेन्द्र देवरान शहना सोम्यास सोभ भद्धारा४नी 'माणा उबवाय, घयण निद्दे से विट्ट सि' माज्ञा सेवा, વચન અને નિર્દેશમાં રહે છે. સૂ ૧ ॥