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________________ समाजसुधारकः— अपने युग के समाज सुधारकोंमें वाचस्पतिजी सबके अगुआ थे। युवकों और शिथिलाचारियों को चेतावनी देनेवाले उनके तीक्ष्ण वचन वाण, समाजउत्थान, धर्मप्रचार एवं संयम रक्षाके हितार्थ बजाया गया उनका तेजस्वी विगुल, अनुशासन और साधू समाचारीके गौरव के सार-संभाल करने वाले उनके नेत्र - युग्म आज एक स्मृतिमात्र बन कर रह गये हैं । पदकी निलोभताः गुरुदेव जिस कार्यको हाथ में लेते थे उसके लिये अपनेको अर्पित कर देते थे । साथी आत्मा के विरुद्ध दुनियांकी लाख खुशामदों के बावजूद, उक्त कामको छोड़ने में भी नहीं हिचकते थे जिसको वे उपयुक्त न समझते । श्रमण संघ निर्माण में जो कार्य उन्होंने किया, बढ़ी उनकी कर्मशीलता एक प्रमाणे हैं | अमृतसर से अर्थात् हिन्दुस्तान के एक छोर से चले | मौसम सख्त, मार्ग कठिन, तथा शरीर अस्वस्थ । सादडी (मारवाड) पहुॅचे। अथक प्रयत्नोंसे साध्यसिद्धिमें जुटे । जब तक मनमें उद्देश्य पूर्ति की आशा रंही कभी पीछे न हटे । पर जब ढंग खराब देखा, सुधारकी आशा न रही तो जिस लगन और शान से जुटे थे, उसी लगन और शानसे पीछे हट गये । उनके व्यक्तित्व, अनुशासन निष्ठता, संयमकी कड़कता और आगम ज्ञानसे प्रभावित होकर, इन्कार करने पर भी भीनासर साधूसंमेलन के अवसर पर उन्हे प्रधान मंत्री पद दिया गया। किंतु उनकी योग्य देखरेख और यथार्थ पथ प्रदर्शनका लाभ संघ के भाग्य में बंधा नहीं था । श्रमण संघकी आन्तरिक स्थिति बिगडने लगी । आचार्य आचार्य के अधिकारों का स्पष्टीकरण न हो सका ध्वनियंत्र के मसला सुलझने की बजाय और अधिक उलझने लगा, मन्त्रीमंडलका असंतोषप्रद रुख व कार्य देखा तो उन्होंने प्रधान मंत्री पद से फौरन त्यागपत्र दे डाला। गुरुदेवका त्यागपत्र इन कार्योंको शीघ्र हल करने की प्रेरणा देता, यदि उसे उपेक्षित करके अन्धकारमें फेंकन दिया जाता । गुरुदेव भी और मंत्रियों की तरह कागजी कार्यवाहियोंके बल पर अपने पदको बनाये रख सकते थे, किंतु ऊपरी लापापोती करना वे आत्महनन के तुल्य समझते थे । "संतका जीवन मंगल है वहां मरण भी 1 71 गुरुदेवका जीवन जितना महान पा उतनीही मृत्यु भी । एक वर्षसे उन्हें केन्सर था । सर्जिकल इलाज के लिये विनंती की गई तो वडी संजीदगी से फर्माया स्था०-२
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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