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स्थाना
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लेवानां विहितानाम् = आच्छादितानाम्, मुद्रितानाम् = मृत्तिकादिमुद्रावतां, लान्छितानाम् = रेखादिभिः कृताञ्जनानां कियन्तं कालं योनि उत्पादशक्तिः सन्ति ष्ठ ? कोष्ठागारादिरक्षितानां करसम्रादिदशविधधान्यानां योनिः कियत्कालावधितिष्ठति' इति मश्वाशयः । भगवानाह - हे गौतम । एतेषां धान्यानां योनिः जनन्येन अन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षे तु पश्च संवत्सरान् तिष्ठति ततः परम्= तदनन्तर योनिः पलायन=र्णादिना हीयते याच्छन्द्रात् ततः परं योनिः विस=नश्यति ततः परं बीजम् अवीजं भाति = उत्तमपि तन् न प्ररोहति । गया हो ऐसी जगह में रखे गये हों चाहे अब लिप्त हों - ऐसे पात्रमें भर कर रखे गये हों कि जिसका द्वार पहिले ढकन से ढक दिया गया हो और बाद में गोवर आदिसे छाय कर दिया गया हो चाहे लिप्त हों-सा मान्य रूप से ढककर रखे हुए हों, चाहे मुद्रित हों-मिट्टी आदिका लेप कर रखे गये हों चाहे लान्छित हों-रेखा आदि द्वारा जो चिन्हित कर दिये गये हों कितने काल तक उत्पादन शक्ति रहती है ? अर्थात् कोष्ठागार आदि में भर कर रखे गये इन कल मजूर आदि दश प्रका एके धान्यों की अङ्करोत्यदन शक्ति कितने समय तक रहती है, ऐसा प्रश्नाशय है-इस पर भगवान् कहते हैं - हे गौतम ! इन १० प्रकारके धान्यों की अङ्करोत्पादन शक्ति जघन्यसे एक अन्तर्मुहूर्त की है, और उत्कृष्टसे पांच वर्ष की है, इसके बाद उनकी वह अङ्करोत्पादन शक्ति वर्णादि द्वारा कमजोर हो जाती है फिर वे अङ्कुरोत्पादन करने में शक्ति सम्पन्न 'नहीं रहते हैं । यही बात "बीजं अभीजं भवति " इस पोठ द्वारा प्रकट की गई है अर्थात् वह केवल देखने मेंही बीज लगता है, पर वास्तवमें કે લેપ કર્યા વગરના ઢાંકણાવાળા વાસણમાં રાખેલા, રેતી રાખ આદિમા राजेश्वा वटालु, भसूर, तत्र, भग अउछ, वास, उजथी, योजा, तुवेर, या આદિ ધાન્યાની અરાત્પાદન શક્તિ કેટલા કળની કહી છે ?
મહાવીર પ્રભુને ઉત્તર—હે ગૌતમ! વટાણા ન્યાદિ આ ૧૦ પ્રકારના ધાન્યની અંકુરેત્પાદન શક્તિ એછામાં એછા એક અન્તમુહૂર્ત પ્રમાણ કાળની અને અધિકમાં અધિક પચ વર્ષ સુધીની હાય છે. ત્યારમાદ તેની અકુરોત્સાહન શક્તિના ક્ષય થઇ જાય છે અને આખરે તેમની તે શક્તિ નષ્ટ થઇ જાય છે, એટલા કાળ બાદ તેમે અકુરેાદન કરવાની શકિતથી રહિત जनी लय हे. मे ४ वांत सूत्रारे " वीज अवीजं भवति " આ સૂત્રપાઠ દ્વારા પ્રકટ કરી છે, એટલે કે પાંચ વર્ષ બાદ તેએ ખીજ જેવા દેખાતાં