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अराजकेहि लोकेऽस्मिन् सर्वतो विदुने भयात् ।
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रक्षार्थमस्य सस्य, राजानमसृजत् प्रभुः || २ || इति । इति तृतीय निश्रा
स्थानम् ३।
तथा-गृहपति सय्यदायको धर्मोपग्रहकारको भवति, आवासदायकत्वेन तस्यापि तथात्त्रात् । तदुक्तम्
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धृतिर्मतिर्गतिस्तेन, दत्ता दत्त सुखं तथा ।
गुणिभ्यः साधुमुख्येभ्यो, येन नाम समर्पितः ॥ १ ॥ " इति । -" जो देइ उवस्मयं जइवराणत नियमजोगजुत्ताणं । तेगं दिन्नात्यन्नासयगासगविगप्पा ॥ १ ॥
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तथा
स्थानास्त्रे
है-" क्षुद्र लो कु लोके " इत्यादि ।
क्षुदलोकों से युक्त इस लोक में अगर शांन दति दयालु की रक्षा राजा नहीं करे तो धर्म की रक्षा कैसे किया जाय ।
इन दोनों लोकोंका अर्थ स्पष्ट है । इस प्रकारका यह तृतीय स्थान है, चतुर्थ निशास्थान गृहपति है, क्योंकि गृहपति शय्यादायक होता है, अतः वह धर्मोपकारक होता है, इसलिये निवासदायक होने से वह भी विधान है । कहा भी है-" धृतिर्मतिर्गतिरतेन ' इत्यादि ।
जिसने साधुजनोंके लिये वाम प्रदान किया है, उसने उनके लिये वृति मति ज्ञान और गति प्रदान की है, तथा सुख दिया है । तथा" जो देह उवस्सयं " इत्यादि ।
जो तप, नियम, योग युक्त साधुजनोंके लिये उपाय देता है, वह उनके लिये शयन, आसन, वस्त्र, अन्न, पान आदि सब कुछ दिया क्षुद्रलोकाकुळे लोके " त्यहि मा जन्ने सोनो अर्थ स्पष्ट छे— (४) साधुगोनु थोथु निश्रास्थान गृड्डयति (गृहस्थ ) छे. २ } ગૃહપતિ શય્યાદાયક હૈય છે આ રીતે સાધુને નિવાસસ્થાન આપનાર હેાવાને કારણે તેને પણ નિશ્ર સ્થાન રૂપ પ્રકટ કરવામાં આવેલ છે.
पाशुहे " "वृतिर्मतिर्गतिस्तेन " इत्यादि
જેથે સાધુને નિવાસસ્થાન પ્રાન કર્યું છે, તેણે તેમને ધૃતિ, મતિ, ज्ञान भने गति प्रदान ४री छे तथा तेभने सुभ आभ्युं छे. तथा " जो देव उत्रस्लयं ” धूत्यादि—में तय नियम गने योगयुक्त साधुयाने उपाश्रय याये छे, तेथे तेमने शयन, आसन, वस्त्र, अन्न, पाथि आदि रुघणुं माप्यु છે, એમ સમજવું. આ પ્રકારનું આ ચૈત્યું નિશ્રસ્થાન છે,
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