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________________ % 3D सुधाटीका स्था० उ०३सू०४ वादर जीवविशेषनिरूपणम् १८७ वेन्द्रियमुण्ड इत्युच्यते । एवं चक्षुरिन्द्रिय-मुण्डादिरपि बोध्य इति । प्रकारान्तरेण पुनरपि पञ्चविधान् मुण्डानाह-क्रोधसुण्ड -क्रोधस्य अपनयात् क्रोधे सुडः क्रोधेन वा मुण्ड इति ११ एवं मानमुण्डो २ मायामुण्डो ३ लोभमुण्डः ४ गिरोमुण्डश्च ५ बोध्य इति ।मु० ३॥ मुण्डनं च वादरजीवविशेषाणामेव भवतीति वादरजीव विशेषानाह-- मूलम्-अहेलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया १ आउकाइयार वाउकाइया३ वणस्सई काइया ४ ओराला तसा पाणा ५ ॥१॥ उड्डलोगे णं पंच बायरा पण्णता, तं जहाएवं तं चेव । तिरियलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, तं जहाएगिदिया जाव पंचिंदिया ३॥ पंचविहा वायरतेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा-इंगाले १ जाला २ मुम्मुरे ३ अच्ची ४ इन्द्रिय से खुण्ड होता है-अर्थात् श्रोत्रेन्द्रिय के विषयभूत शब्दमें राग देष होने रूप भाव कोई २ करता है, वह पुरुषोनेन्द्रिय सुण्ड कहा जाता है, इसी प्रकार से चक्षु इन्द्रिय मुण्ड आदि भी समझ लेखा चाहिये । इस द्वितीय प्रकारान्तर से भी मुण्ड पांच प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-क्रोध मुण्ड, मान मुण्ड, माया मुण्ड, लोम मुण्ड और शिगे मुण्ड है, जो क्रोध को हटा देता है, क्रोच करने का त्याग कर देताहै, वह क्रोध मुण्ड है, इसी प्रकारसे मान सुण्ड आदि भी समझ लेना चाहिय।।मु०३॥ નના સંબધથી પુરુષ પણ મુરિત થાય છે તે મુંડ (મુ ડિત) ના પાચ ५४.२ ४॥ छ-(१) श्रोत्रन्द्रिय मुंड, (२) सुरिन्द्रिय मुंडे, (३) प्राणेन्द्रिय भु, (४) २सनेन्द्रिय भु म (५) २५NCद्रय भु. જે શ્રોત્રેન્દ્રિયમાં સંડ અથવા શ્રોત્રેન્દ્રિયની અપેક્ષાએ મુંડ અથવા શ્રોત્રેન્દ્રિયના વિષય રૂ૫ શબ્દમાં રાગદ્વેષથી રહિત હોય છે તેને શ્રેગ્નેન્દ્રિય મુંડ કહે છે. એ જ પ્રમાણે ચક્ષુરિન્દ્રિય મુંડ આદિ વિષે પણ સમજવું. मी शत पशु पांय ४२ना भु ४ छ-१) ओ५४७, (२) रानभुड, (3) भायाभु, (४) सालभु मन (५) शिभु. रे भास होप २ કરે છે-ક્રોધને ત્યાગ કરે છે તેને કોઇ મુંડ કહે છે. એ જ પ્રમાણે માનમુંડ मालि विप समन: ॥ सू. ३ ॥
SR No.009310
Book TitleSthanang Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages773
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size43 MB
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