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सुधा टीका स्था०३ उ० ३ ० ४४ कपायवतां मायानिरूपणम्
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व्यन्ति ' इति कृत्वा नो आलोचयति नो प्रतिक्रामतीत्यादि ३ । २। इदं च सूत्रममाप्तमसिद्धिपुरुषापेक्षम् । सामान्यजनस्यैवापकीर्ति सद्भावात् । ' वीहि ' इत्यादि, त्रिभिः स्थानैः कारणैः - की यदिहानिरूपैर्मायावी मायां कृत्वा नो आलोचयति यावत् नो प्रतिपद्यते । तानि स्थानान्याह - कीर्त्तिर्वा मे परिहास्वति - कीर्त्तिः- पूर्वकालोपार्जिता प्रसिद्धिः परिहास्यति - हीना भविष्यति, यज्ञो वा में परिहास्यति - यशः - लोकप्रसृतं प्रशंसारूपं तन्मे परिहास्यति नष्टं भविष्यति २। पूजासत्कारं वा मे परिहास्यति - पूजासत्कारमित्येकपदम् । तत्र - पूजा - वस्त्रादिना, सत्कारः-अभ्युत्थानादिना तदुभयं मे परिहास्यति ३ । इदं तु सूत्रं प्राप्तप्रसिद्धिपुरुषापेक्षं समुपार्जितमसिद्धिकस्यैव कीर्त्यादि हानि सद्भावात्॥सू. ४४ ॥ अभिप्राय से वह आलोचना आदि नहीं करता है यह सूत्र अप्राप्तप्रसिद्धि वाले पुरुष की अपेक्षा से है, क्यों कि सामान्यजन की ही अपकीर्ति का सद्भाव होता है ।
इन स्थानों को लेकर भी मायी माया को करके उसकी आलोचना नहीं करता है यावत् वह यथार्थ प्रायश्चित्त नहीं लेता है वे तीन स्थान इस प्रकार से हैं- " कीर्ति र्घा में परिहास्यति सब दिशा में यशका फैलना उसका नाम कीर्ति है यदि मैं आलोचना आदि करता हूं तो मेरी वह कीर्ति हीन हो जावेगी, अथवा मेरा यश कम हो जावेगा यहां यश से लोक में फैली हुई प्रशंसा गृहीत हुई है अथवा लोक में जो मेरा पूजा सत्कार होता है वह भी नष्ट हो जावेगा यहां (6 पूजासत्कार " यह एकपद हैं वस्त्र आदि की प्राप्ति हो जाना इसका नाम पूजा है, और मुझे देखकर जो अन्यजन खड़े आदि हो जाते हैं
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પશુ તે આલેચના આદિ કરતે નથી. આ સૂત્ર અપ્રાપ્ત પ્રસિદ્ધવાળી વ્યક્તિની અપેક્ષાએ કહેવામાં આવ્યુ છે, કારણ કે સામાન્ય માણસની જ અપકીર્તિને સાવ સભવી શકે છે.
નીચેના ત્રણ સ્થાને ( કારણે ) ને લીધે માયીજીવ માયા કરીને તેની आसोयना, तेनुं प्रति भय, निहा, गड, आयश्चित आहि उरतो नथी, कीर्तिर्वा मे परिहास्यति ” ले हु मासेोयना आदि पुरीश तो पूर्व असो याति મારી કીર્તિના લેાપ થશે, (૨) અથવા મારા યશ એ થશે અહીં શ” પદ્મ દ્વારા લેાકેામાં વ્યાપેલી કીતિ અથવા પ્રશસાની ભાવના ગ્રહણ કરવી लेहये. ( 3 ) " पूजासत्कार " सोभां ने भारी पूलसार थाय छे ते पाथ મધ પડી જશે. વસ્ત્રાદિ પ્રાપ્તિ થવી તેનુ નામ પૂજા છે, ઊભા થઈને માન આપવું વગેરેને સત્કાર કહે છે. આ પ્રકારના વિચારથી પ્રેરાઈને તે દૃષ્કૃત્યની