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सुधा टीका स्था० ४ उ०२ सू०१९ सप्राणविशेषस्वरूपनिरूपणम् __६४७
चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-आयंतकरे णाममेगे णो परंतकरे १, परंतकरे णाममेगे णो आयंतकरे २, एगे आयंतकरेवि परंतकरेवि ३, एगे णो आयंतकरे णो परंतकरे ४।२।
चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा- आयंतमे णाममेगे णो परंतमे १, परंतमे ४. ३॥
चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा--आयंदमे णाममेगे णो परंदमे० ४,४। सू०.४९ ॥
छाया-~चत्वारि पुरुपजातानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-तथो नामैकः १, नोतथी नामैकः २, सौवस्तिको नामैकः ३, प्रधानो नामैकः ४, (१) ___ चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-आत्मान्तकरो नामैको नो परान्तकरः १, परान्तकरो नामैको नो आत्मान्तकरः २, एक आत्मान्तकरोऽपि परान्तकरोऽपि ३, एको नो आत्मान्तकरो नो परान्तकरः ४।२। ___चत्वारि पुरुपजातानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-आत्मतमो नामैको नो परतमः १, परतम० ४,३
अथ सूत्रकार त्रस प्राणविशेषका स्वरूप दिखानेके लिये चतुर्भङ्गी रूप. चार सूत्रसे कथन करते हैं।"चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता" इत्यादि
पुरुष जात चार कहे गये हैं। जैसे-कोई एक तथा १, कोई एक नो तथा २, कोई एक सौवस्तिक ३ और कोई एक प्रधान ४।।
पुनश्च-पुरुष जात चार कहे गये हैं, जैसे-एक आत्मान्तकर नो परान्तकर १, कोई एक परान्तकर नो आत्मान्तकर २, कोई एक आत्मान्तकरभी और परान्तकरभी ३, तथा कोई एक नो आत्मान्तकर नो परान्तकर ४ । पुनश्च-पुरुष जात चार कहे गये हैं, जैसे-कोई एक
હવે સૂત્રકાર ત્રસ પ્રાણુવિશેષના સ્વરૂપનું ચતુર્ભાગીયુક્ત ચાર સૂત્રો દ્વારા नि३५९ ४२ छ “ चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता" त्याह
पुरुषना या२ ५४२ ४ा छ-(१) तथा पुरुष (माघारी), (२) नो तथा (भाज्ञा उथापना२) (3) सौवस्ति (स्तुति ४२ना२) (४) प्रधान पुरुष । १।
આ રીતે પણ ચાર પુરુષ કહ્યા છે–(૧) આત્માન્તકર ને પરાન્તરમ, (२) ५२-२ ने मामान्त४२, (३) मात्मान्त४२ भने ५२२१४२. (४) ना. આત્માન્તકર ને પરાન્તકર. ૨ |