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________________ स्थामा सूत्रे 1 विदिशामविवक्षितत्वात्, ' छर्हि दिसाहिं जीवाणं गई पवत्तइ ' इत्यादेरत्रैव वक्ष्यमाणत्वाच्च । प्रस्तुतमाह —' तीहिं दिसाहिं ' इत्यादि, अत्र " तिसृभिर्दिग्भिः " इत्यनेन सप्तसु दिक्षु सप्तमी भावदिक, तृतीया द्रव्यदिक, पञ्चमी तापक्षेत्र दिग् वा यथायोग्यं व्याख्यातुं शक्यते । तिसृभिरूर्ध्वास्तिर्यग्रूपाभिर्दिग्भिर्जीवानां गतिः प्रवर्त्तते, तत्र गतिः - प्रज्ञापकस्थानापेक्षया मृत्वाऽन्यत्र गमनम् २ एवं - पूर्वोक्ताभिलापवत् स यथा - " तीहिं दिसाहिं जीवाणं आगईपवत्त, तं जहा - उड्ढाए आहार तिरियाए " एवं सर्वत्र संयोज्यम् । आगतिः - प्रज्ञापकप्रत्यासन्नस्थाने समागमनम् ३। व्युत्क्रान्तिः - उत्पत्तिः आहारः प्रसिद्ध: ५, वृद्धि: - शरीरस्य वर्द्धनम् ६, निरृद्धिः - तस्यैव हानि: ७, गतिपर्यायः - मृत्वा गत्यन्तरे गमनं शाओं के अनुसार नहीं होते हैं । इसी कारण शेपरदों में विदिशाओं की विवक्षा नहीं हुई है । " छहिं दिसाहि जीवाणं पवत्तद्द " ऐसा कथन सूत्रकार आगे स्वयं करने वाले है । " तीहि दिसाहिं " इत्यादि - यहां सात दिशाओं में जो सातवीं भावदिशा है वह, या तीसरी जो द्रव्यदिशा है या पांचवीं जो तापक्षेत्रदिशा है वह यथायोग्यरूप से व्याख्यात हो सकती है उर्ध्वदिशा, अधोदिशा और तिर्यदिशा इन दिशाओं से जीव की गति होती है प्रज्ञापक के स्थान की अपेक्षा से, मरकर अन्यन्त्र जाना इसका नाम गति है, २ इसी तरह से पूर्वोक्त अभिलाप की तरह से ही तीन दिशाओं से जीवों की आगति होती है प्रज्ञापक के नजदीक के स्थान में आना इसका नाम आगति है ३ व्युत्क्रान्ति नाम उत्पत्ति का है ४, आहार प्रसिद्ध है ५, शरीर के वर्द्धन का नाम वृद्धि है ६ शरीर के ह्रास-हानि का नाम निर्वृद्धि है ७, मर 'छहिं दिसाहिं जीवाणं गई पवत्तइ " या प्रकार उथन सूत्रार भागन रवाना छे. " तीहि दिसाहिं " त्याहि 66 અહીં સાત દિશાઓમાંની જે સાતમી ભાવિશા છે તેનું, અથવા ત્રીજી જે દ્રવ્યદિશા છે તેનું અથવા પાંચમી જે તાપક્ષેત્રક્રિશા છે તેનું યથાચેાગ્ય રીતે વણુન થઈ શકે છે. ઉર્ધ્વ દિશા, અધેાદિશા અને તિગ્દિશા, આ દિશામાંથી જીવની ગતિ થાય છે. (૨) પ્રજ્ઞાપકના સ્થાનની અપેક્ષાએ, મરીને અન્યત્ર જવું તેનું નામ ગતિ છે. (૩) એજ પ્રમાણે-પૂર્વોક્ત અભિલાપની જેમ જ ત્રણ દિશાઓમાંથી જીવાની આગતિ થાય છે. પ્રજ્ઞાપકની સમીપના સ્થાનમાં भाववुं तेनुं नाम भगति छे (४) व्युत् अन्तिनुं नाम उत्पत्ति है. (4) 'भाÈार’ પદ સમજી શકાય એવું છે. (૬) શરીર વધવું તેનું નામ વૃદ્ધિ છે. (૭) ५०
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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